मुख्यमंत्री सोरेन के खिलाफ जांच के अनुरोध वाली याचिका सुनवाई योग्य: झारखंड उच्च न्यायालय
झारखंड सीएम हेमंत सोरेन (Photo Credits: Twitter)

रांची, 3 जून : झारखंड उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका (पीआईएल) को शुक्रवार को सुनवाई योग्य करार दिया, जिसमें खनन पट्टे को मंजूरी देने और कथित तौर पर उनके परिवार के सदस्यों द्वारा संचालित कुछ मुखौटा कंपनियों के लेन-देन को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के खिलाफ जांच की मांग की गई है. मुख्य न्यायाधीश रवि रंजन और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश पर की गयी सुनवाई एक जून को पूरी की थी और अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह तीन जून को फैसला सुनाएगा कि याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं. अदालत ने आज याचिका को सुनवाई योग्य करार दिया और मामले में सुनवाई के लिए 10 जून की तारीख मुकर्रर की.

पीठ ने कहा क शिवशंकर शर्मा की ओर से दायर जनहित याचिका में कोई विसंगति नहीं है, साथ ही इसे लेकर कोई प्रतिबंध भी नहीं है कि आखिर उच्च न्यायालय में इसकी सुनवाई क्यों नहीं हो सकती. खंडपीठ ने कहा कि याचिका के गुण-दोष पर निर्णय लेना अभी बाकी है और अदालत 10 जून को इस पर विस्तृत सुनवाई करेगी. राज्य के महाधिवक्ता राजीव रंजन ने अदालत के आदेश की समीक्षा के लिए कुछ मोहलत देने का अनुरोध किया और पीठ को सूचित किया कि इस मामले में राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल अगली तारीख को सुनवाई के लिए मौजूद नहीं हैं. इस पर अदालत ने रंजन को फटकार लगाते हुए कहा कि सुनवाई की तारीख नहीं बदली जाएगी, बल्कि वकीलों को अदालत की सहायता के लिए अपने कार्यक्रम में तब्दीली करनी होगी. यह भी पढ़ें : ओएनजीसी की भारी निवेश योजनाओं को ठोस नकदी प्रवाह से मिलेगा समर्थन: एसएंडपी

राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका को निरस्त कराने के लिए अंतिम प्रयास के तौर पर उच्चतम न्यायालय का रुख किया था और संबंधित याचिका की विचारणीयता पर सवाल उठाया था. इतना ही नहीं, याचिकाकर्ता शर्मा मामले की सीबीआई जांच की मांग के लिए दबाव बना रहे हैं. उच्चतम न्यायालय ने, हालांकि इस बिंदु पर पहले उच्च न्यायालय को अपना फैसला देने को कहा था कि याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं. अब दोनों पक्ष याचिका के गुण-दोष पर बहस करेंगे. शर्मा ने दो जनहित याचिकाएं दायर की हैं. पहली याचिका में कथित तौर पर मुख्यमंत्री के नाम पर खनन लाइसेंस आवंटित किये जाने को लेकर, जबकि दूसरी में कथित तौर पर सोरेन एवं उनके निकट संबंधियों द्वारा धनशोधन के लिए मुखौटा कंपनियों के संचालन के आरोप हैं. जनहित याचिका में आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल की भूमिका पर भी सवाल खड़े किये गए हैं. सोरेन जब खनन मंत्री थे, उस वक्त सिंघल खनन सचिव थीं.