चेन्नई, 22 जनवरी : मद्रास उच्च न्यायालय ने सोमवार को तमिलनाडु में श्री राम मंदिर में ‘श्री राम लला’ की प्राण प्रतिष्ठा से संबंधित कार्यक्रमों के आयोजन पर राज्य सरकार के रुख का हवाला देते हुए कहा कि निजी परिसरों में कार्यक्रमों के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है. साथ ही अदालत ने कहा कि भगवान के प्रति भक्ति केवल शांति और खुशहाली के लिए है, न कि इसका उद्देश्य सामाजिक संतुलन को बिगाड़ना है.
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भव्य मंदिर में ‘श्री राम लला’ की ‘प्राण प्रतिष्ठा’ को लेकर उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि समारोह के सीधे प्रसारण की व्यवस्था करने का अधिकार आयोजकों पर छोड़ा जाएगा. न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने एक रिट याचिका पर आदेश पारित किया, जिसमें सहायक पुलिस आयुक्त, अवाडी डिवीजन, पट्टाभिराम डिवीजन प्रभारी (प्रथम प्रतिवादी) द्वारा शहर के पट्टाभिराम में एक विवाह हॉल में सोमवार को भजन और अन्नदानम आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार किए जाने के आदेश को चुनौती दी गई थी.
याचिका एल गणपति ने दायर की थी. राज्य की ओर से पेश हुए अतिरिक्त लोक अभियोजक ए. दामोदरन ने कहा कि मंडप, निजी मंदिरों और किसी अन्य निजी स्थान जैसे निजी परिसरों में आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों, भजन और अन्नदानम के लिए पुलिस से किसी भी अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है. उनके अनुसार, अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के सीधे प्रसारण की व्यवस्था का जिम्मा आयोजकों का होगा.
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘राज्य सरकार और पुलिस द्वारा उठाए गए उपरोक्त रुख से यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि इस अवसर को ध्यान में रखते हुए समारोह आयोजित करना, भजन गाना/राम नाम का उच्चारण करना, (अन्नदानम का आयोजन) करना अपने आप में निषिद्ध या प्रतिबंधित नहीं है. इनका आयोजन इस बात को ध्यान में रखते हुए किया जाए कि यह सब आज कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा किए बिना जिम्मेदारीपूर्ण तरीके से होगा.’’
अदालत ने याचिका का निपटार करते हुए कहा, ‘‘किसी भी गलत सूचना की या गलत सूचना के प्रसार की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। सभी संबंधित पक्षों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि भगवान के प्रति भक्ति केवल शांति और खुशी के लिए है, न कि समाज में संतुलन को बिगाड़ने के लिए.’’
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