
नयी दिल्ली, एक अप्रैल संसद ने मंगलवार को सहकारिता क्षेत्र में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान के लिए देश के पहले सहकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रावधान वाले एक विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया जाएगा।
राज्यसभा ने इन प्रावधानों वाले ‘त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी विधेयक, 2025’ को ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।
इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सहकारिता राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने सहकारिता क्षेत्र की जरूरतों को समझते हुए एक अलग मंत्रालय बनाया। मोहोल ने कहा कि कहा कि इस विश्वविद्यालय से पूरे देश को नया सहकारी नेतृत्व प्राप्त होगा।
उन्होंने कहा कि इस विधेयक के पारित होने के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था सशक्त होगी, स्वरोजगार बढ़ेगा, छोटे उद्योगों का विकास होगा, सामाजिक समावेश बढ़ेगा और नवाचार में नए मानक स्थापित होंगे।
उन्होंने कहा कि सहकारिता क्षेत्र में पिछले 10 वर्ष में इतना काम हुआ है कि अब यह आवश्यकता महसूस की जाने लगी है कि इसे आगे बढ़ाने के लिए एक संस्थागत ढांचा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के सहकारी क्षेत्र को अगले कुछ सालों में 17 लाख प्रशिक्षित युवाओं की जरूरत पड़ेगी।
उन्होंने इस विश्वविद्यालय का नाम त्रिभुवनदास किशिभाई पटेल पर रखे जाने को सही ठहराते हुए कहा कि उन्होंने आजादी के आंदोलन के दौरान ही सहकारिता के क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया था और उन्हें महात्मा गांधी एवं सरदार पटेल का प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन मिला था।
विधेयक के कारणों एवं उद्देश्यों में कहा गया है कि गुजरात के आणंद में ग्रामीण प्रबंधन संस्थान का अस्तित्व प्रस्तावित विश्वविद्यालय के एक स्कूल की तरह बना रहेगा और इसे दक्षता केंद्र का दर्जा दिया जाएगा। इसके अनुसार विश्वविद्यालय के संस्थागत ढांचे के तहत संस्थान की स्वायत्तता एवं पहचान को बरकरार रखा जाएगा।
त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी देश में सहकारिता को बढ़ावा देने के लिए सहकारिता शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देगी। प्रस्तावित संस्थान में डेरी, मत्स्य, चीनी, ग्रामीण ऋण जैसे क्षेत्रों के अलग स्कूल होंगे।
प्रस्तावित विश्वविद्यालय से विभिन्न राज्यों के सहकारिता से जुड़े संस्था संबद्ध हो सकते हैं, किंतु यह संबद्धता पूर्णत: स्वैच्छिक आधार पर होगी।
विधेयक पर हुई चर्चा के दौरान विपक्षी सदस्यों ने देश में सहकारी संस्थानों को मजबूती दिये जाने पर बल देने के साथ-साथ कहा कि गुजरात में पहले से मौजूद एक संस्थान को विश्वविद्यालय का दर्जा देने और उसका नाम बदल देने मात्र से काम नहीं चलेगा। इन सदस्यों ने कहा कि सहकारिता देश के विकास का मूलाधार हैं।
चर्चा में भाग लेते हुए सत्ता पक्षा के सदस्यों ने विधेयक का स्वागत करते हुए कहा कि इससे देश में सहकारिता आंदोलन को बल मिलेगा और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
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