इस्लामाबाद, 21 अक्टूबर पाकिस्तान की ‘नेशनल असेंबली’ (संसद) ने प्रधान न्यायाधीश के कार्यकाल को सीमित करने वाले संशोधित विधेयक को रातभर चली चर्चा के बाद सोमवार तड़के मंजूरी दे दी।
सीनेट ने रविवार को दो तिहाई बहुमत से 26वें संविधान संशोधन विधेयक को हरी झंडी दे दी। फिर, रविवार देर रात शुरू हुए और सोमवार सुबह पांच बजे तक जारी रहे सत्र के दौरान, ‘नेशनल असेंबली’ ने भी विधेयक को पारित कर दिया। विपक्ष का आरोप है कि विधेयक का उद्देश्य स्वतंत्र न्यायपालिका की शक्तियों को कम करना है । नेशनल असेंबली के 336 सदस्यों में 225 ने प्रस्तावित विधेयक का समर्थन किया।
राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने बाद में विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी, जो उनके हस्ताक्षर के बाद कानून बन गया।
‘नेशनल असेंबली’ सचिवालय की अधिसूचना के अनुसार, ‘संविधान (26वां संशोधन) अधिनियम, 2024’ को ‘‘राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई है’’।
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) और सुन्नी-इत्तेहाद काउंसिल (एसआईसी) ने संशोधन विधेयक का विरोध किया, लेकिन पीटीआई के समर्थन से सीट जीतने वाले छह निर्दलीय सदस्यों ने विधेयक का समर्थन किया।
सरकार को विधेयक पारित करने के लिए 224 मतों की आवश्यकता थी।
संशोधन को मंजूरी देने के लिए दो-तिहाई बहुमत आवश्यक होता है और सीनेट में रविवार को संशोधन को मंजूरी देने के लिए चार के मुकाबले 65 वोट पड़े। सत्तारूढ़ गठबंधन को संसद के ऊपरी सदन में 64 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता थी।
इस विधेयक में सर्वोच्च न्यायालय के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने के लिए एक विशेष आयोग का गठन करने समेत कई संवैधानिक संशोधन शामिल हैं।
सीनेट के इस सत्र में विधेयक पेश करते हुए कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने कहा कि ‘नए चेहरे’ वाले आयोग में मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश, दो सीनेटर और नेशनल असेंबली के दो सदस्य (एमएनए) शामिल होंगे। सीनेट और नेशनल असेंबली के दो-दो सदस्यों में से एक-एक विपक्षी दल से होगा।
इस संशोधन से अब वर्तमान मुख्य न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने के बाद उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के मुख्य न्यायाधीश के पद पर स्वतः पदोन्नति पर रोक लग गई है।
‘स्पीकर’ अयाज सादिक ने ‘नेशनल असेंबली’ में कार्यवाही की अध्यक्षता की।
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से जारी एक बयान के अनुसार, कैबिनेट बैठक से पहले प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन पर विस्तृत चर्चा के लिए राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से मुलाकात कर उन्हें जानकारी दी और उनसे परामर्श किया।
हालांकि, विपक्ष ने आरोप लगाया कि पूरी कवायद का उद्देश्य न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह की नियुक्ति को रोकना है, ताकि 25 अक्टूबर को वर्तमान मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा की सेवानिवृत्ति पर वे मुख्य न्यायाधीश नहीं बन सकें।
पीटीआई नेता हम्माद अजहर ने संशोधन को “न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर घातक प्रहार” करार दिया और बताया कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार सरकार को देने से न्यायपालिका का राजनीतिकरण होगा।
पीटीआई नेता अली जफर ने कहा कि उनकी पार्टी के सांसदों को इसके पक्ष में मतदान करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के सांसद गैरमौजूद थे क्योंकि उन्हें डर था कि सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए जबरन उनपर दबाव बनाया जाएगा।
उन्होंने सीनेट के अध्यक्ष से पीटीआई के किसी भी सांसद के वोट की गिनती इसमें शामिल नहीं करने का आग्रह किया।
इस विधेयक को पारित कराने में व्यापक प्रयास करने वाले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के प्रमुख बिलावल भुट्टो-जरदारी ने कहा कि सरकार इस संशोधन की दिशा में आगे बढ़ेगी, चाहे पीटीआई इसके पक्ष में मतदान करे या नहीं।
बिलावल ने मीडियाकर्मियों से कहा, ‘‘हमने जितना हो सका उतना इंतजार किया और आज किसी भी हालात में यह काम पूरा हो जाएगा।’’
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