इस्लामाबाद, 15 सितंबर पाकिस्तान सरकार के एक प्रतिनिधिमंडल ने रविवार को प्रमुख धर्मगुरु और दक्षिणपंथी राजनीतिक नेता मौलाना फजल-उर-रहमान से मुलाकात की और विवादास्पद संविधान संशोधन विधेयक पर उनका समर्थन मांगा। इस विवादास्पद विधेयक का मकसद न्यायपालिका से संबंधित कानूनों में बदलाव लाना है।
संशोधनों का विवरण अब भी राज है क्योंकि सरकार ने आधिकारिक तौर पर इसे मीडिया के साथ साझा नहीं किया है और ना ही सार्वजनिक रूप से इस पर चर्चा की है। अब तक जो रिपोर्ट मिली है, उससे पता चलता है कि सरकार न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने और उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश का कार्यकाल तय करने की योजना बना रही है।
सरकार संविधान संशोधन के जरिए से एक संवैधानिक अदालत का गठन करना चाहती है तथा संविधान के अनुच्छेद 63-ए में संशोधन करना चाहती है - जो सांसदों के दलबदल से संबंधित है।
सरकार के पास संविधान में संशोधन के लिए दो तिहाई बहुमत नहीं है और उसे मौलाना रहमान के समर्थन की जरूरत है। उनकी जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल (जेयूआई-एफ) के नेशनल असेंबली (संसद) में आठ सदस्य और पांच सीनेटर हैं। उनकी पार्टी संसद में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में है।
पूरे दिन उनपर नजरें टिकी रहीं क्योंकि सरकार और विपक्षी दल पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रतिनिधिमंडल ने आज उनसे मुलाकात की।
सरकार के प्रतिनिधिमंडल में उप प्रधानमंत्री इसहाक डार, गृह मंत्री मोहसिन नकवी और आजम नज़ीर तरार शामिल थे।
सूत्रों ने बताया कि मौलाना सैद्धांतिक रूप से संशोधनों का समर्थन करते हैं, लेकिन पूरी योजना का नहीं। वह यह भी चाहते हैं कि इस बाबत आम सहमति बनाने के लिए पीटीआई को भी भरोसे में लिया जाना चाहिए।
सूचना मंत्री अत्ता तरार ने शाम को मीडिया को बताया कि संविधान संशोधन को पेश करने में देरी हो रही है क्योंकि आम सहमति बनाने के लिए विचार-विमर्श जारी है।
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