देश की खबरें | राज्यपाल की कुलाधिपति के तौर पर नियुक्ति का विरोध: गुजरात विद्यापीठ के नौ न्यासियों का इस्तीफा

अहमदाबाद, 18 अक्टूबर गुजरात विद्यापीठ के न्यासी बोर्ड के नौ सदस्यों ने सोमवार को कहा कि उन्होंने राज्य के राज्यपाल आचार्य देवव्रत को महात्मा गांधी द्वारा 1920 में स्थापित विश्वविद्यालय का नया कुलाधिपति नियुक्त किए जाने के विरोध में इस्तीफा दे दिया है।

उन्होंने इस नियुक्ति में ‘‘अनुचित जल्दबाजी’’ किए जाने और ‘‘राजनीतिक दबाव’’ होने का आरोप लगाया।

बहरहाल, अहमदाबाद स्थित विश्वविद्यालय के निर्णय लेने वाले शीर्ष निकाय ने इस्तीफे स्वीकार नहीं करने का फैसला किया।

एक संयुक्त बयान में, नौ न्यासियों ने सोमवार को कहा कि कुलाधिपति के तौर पर देवव्रत का चयन ‘‘राजनीतिक दबाव’’ के कारण और ‘‘गांधी के मूल्यों, तरीकों और प्रथाओं की पूर्ण अवहेलना’’ कर किया गया है।

न्यासियों ने राज्यपाल देवव्रत से अपील की कि वे ‘‘लोकतंत्र के मौलिक मूल्यों और विश्वविद्यालय के पारदर्शी स्वायत्त निर्णय लेने को बनाए रखने के लिए कुलाधिपति के रूप में कार्यभार ग्रहण करने से इनकार कर दें।’’

देवव्रत ने गुजरात विद्यापीठ के 12वें कुलाधिपति का प्रभार संभालने पर 11 अक्टूबर को सहमति जताई थी।

मानद विश्वविद्यालय गुजरात विद्यापीठ की नीति निर्माता इकाई ने इला भट्ट (89) के इस्तीफे के बाद चार अक्टूबर को 12वें कुलाधिपति के रूप में आचार्य देवव्रत के नाम का प्रस्ताव रखा था।

भट्ट ने अपनी आयु का हवाला देते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था।

बहरहाल, अहमदाबाद स्थित विश्वविद्यालय के निर्णय लेने वाले शीर्ष निकाय ने इस्तीफे स्वीकार नहीं करने का फैसला किया।

गुजरात विद्यापीठ के निर्णय लेने वाले शीर्ष निकाय ने एक बयान में कहा कि आठ न्यासियों (नौवां सदस्य आजीवन न्यासी है) के इस्तीफे को स्वीकार नहीं करने के लिए सोमवार को एक बैठक में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया था।

संस्थान ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, आजीवन न्यासी और नौ न्यासियों द्वारा जारी संयुक्त बयान के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक नरसिंहभाई हठीला ने भी इस्तीफे को स्वीकार नहीं करने के ‘गवर्निंग काउंसिल’ के फैसले को मंजूरी दी ताकि संस्थान को लंबे समय तक उनका मार्गदर्शन मिलता रहे।

एक पत्र में, नौ न्यासियों ने कहा कि देवव्रत का कुलाधिपति के रूप में चयन ‘‘न तो सहज था और न ही न्यासी बोर्ड का सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह राजनीतिक दबाव में लिया गया निर्णय था। यह गांधी के मूल्यों, तरीकों और प्रथाओं की पूरी तरह से अवहेलना थी।’’

इन न्यासियों में नरसिंहभाई हठीला, सुदर्शन अयंगर, अनामिक शाह, मंडबेन पारेख, उत्तमभाई परमार, चैतन्य भट्ट, नीताबेन हार्डिकर, माइकल मझगांवकर और कपिल शाह शामिल हैं।

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