ताजा खबरें | मुंद्रा बंदरगाह से करोड़ों रुपये के नशीले पदार्थों की बरामदगी पर कोई कार्रवाई नहीं : प्रमोद तिवारी

नयी दिल्ली, छह दिसंबर राज्यसभा में कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने शुक्रवार को सीमा पार से नशीली दवाओं की तस्करी का मुद्दा उठाया और आरोप लगाया कि गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह से अब तक 21,000 करोड़ रुपये के नशीले पदार्थों की बरामदगी के बावजूद केंद्र सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है क्योंकि बंदरगाह मालिक एक बड़े उद्योगपति हैं।

शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठाते हुए तिवारी ने बड़ी संख्या में देश के युवाओं के नशे की गिरफ्त में आने पर चिंता जताते हुए कहा कि मादक द्रव्यों का सेवन देश के शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।

उन्होंने नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि देश की आबादी में 10 से 75 वर्ष आयु तक के करीब 20 प्रतिशत लोग किसी न किसी नशे के आदी है जबकि एक सरकारी एजेंसी के मुताबिक अवैध ड्रग कारोबार का आकार लगभग 30,000 करोड़ रुपये का है।

उन्होंने कहा कि 2014 से लेकर जून 2023 तक स्वापक नियंत्रण ब्यूरो द्वारा जब्त किए गए नशीले पदार्थों की मात्रा में लगभग 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

नशीले पदार्थों के सेवन से लोगों की मौत के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए तिवारी ने कहा कि सबसे ज्यादा मौतें राजस्थान और उत्तर प्रदेश में हुई हैं और इनमें 30 से 45 आयु वर्ग के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है।

उन्होंने कहा कि नशाखोरी से उपजी समस्याओं के चलते सात से आठ लोग औसतन रोज आत्महत्या करते हैं।

तिवारी ने कहा कि कई प्रमुख भारतीय शहर सिंथेटिक ड्रग से भरे पड़े हैं तथा अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान की सीमाओं से ड्रग्स की तस्करी के लिए कई मामले सामने आ चुके हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘नशीली दवाओं की तस्करी से भारत की सीमा सुरक्षा को खतरा पैदा हो रहा है। जब-जब ड्रग्स की आपूर्ति की बात होती है तब-तब गुजरात के मुंद्रा पोर्ट का नाम जरूर आता है। यह बंदरगाह नशे की आपूर्ति को लेकर बदनाम हो चुका है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कुछ महीने ही गुजरते हैं कि मुंद्रा पोर्ट पर नशे की खेप बरामद होने की खबर आ जाती है। यह बड़ा बंदरगाह हैं, जहां 21,000 करोड रुपए की ड्रग्स बरामद हुई है। आए दिन करोड़ की ड्रग्स वहां से जब्त होती है। गुजरात ड्रग्स का केंद्र बन गया है और सारे ड्रग्स मुद्रा पोर्ट से निकल रही हैं लेकिन सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। गुजरात के युवाओं का भविष्य नष्ट हो रहा है।’’

कांग्रेस सदस्य ने आरोप लगाया कि मुद्रा पोर्ट के मालिक एक प्रमुख उद्योगपति हैं और इसलिए केंद्र सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।

आम आदमी पार्टी के संदीप पाठक ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह कृषि प्रधान राज्य के पारिस्थितिकी तंत्र को बिगाड़कर पंजाब में ‘कृत्रिम संकट’ पैदा कर रहा है जहां किसानों, आढ़तियों और चावल मिल मालिकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।

चावल मिलों के मुद्दों के समाधान की आवश्यकता पर जोर देते हुए, पाठक ने पूछा कि क्या फसल के मौसम के अनुसार खरीद और भंडारण की प्रक्रिया को मानकीकृत किया गया है और यदि हां, तो इसका पालन क्यों नहीं किया गया।

उन्होंने कहा, ‘‘पंजाब में कृत्रिम संकट पैदा कर दिया गया है जिसमें किसानों, आढ़तियों और चावल मिल मालिकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।’’

उन्होंने कहा कि प्रक्रिया के अनुसार, किसान अपनी उपज स्थानीय मंडी को बेचते हैं, जहां से इसे चावल मिल मालिकों द्वारा खरीदा जाता है। छिलका हटाने के बाद, इसे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों को बेच दिया जाता है, जो फिर इसे राज्य सरकारों को वितरित करते हैं।

उन्होंने कहा कि इस बार धान की खरीद के दौरान एफसीआई के गोदामों को नई खरीद के लिए खाली नहीं किया गया था। इसके अलावा, चावल मिलों के पास पिछले फसल सत्र से 2 लाख टन से अधिक चावल का स्टॉक था, जिसे उठाया नहीं गया।

आप सदस्य ने कहा, ‘‘जब आपके पास गोदामों (एफसीआई) में भंडारण के लिए जगह नहीं होगी और चावल मिलों के पास (भंडार) होगा, तो खरीद प्रभावित होगी।’’

उन्होंने कहा कि इसके परिणामस्वरूप किसानों को मंडियों में अपने उत्पाद बेचने के लिए लंबी कतारें लगानी पड़ीं।

पाठक ने कहा कि उनमें से कई ने नुकसान के डर से कम दरों पर उपज बेची। उन्होंने कहा कि इससे किसानों के लिए अगली फसल में भी देरी हुई, जिससे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा, पहले आढ़तियों को कमीशन के रूप में 2.5 प्रतिशत मिलता था और अब यह 45,000 रुपये तय किया गया है। चावल मिल भी प्रभावित हुईं क्योंकि उन्होंने चावल की छिलका हटाने की प्रक्रिया से लाभ कमाया।

पाठक ने कहा, ‘‘उन्होंने कृषि प्रधान राज्य के पारिस्थितिकी तंत्र को बिगाड़ने की कोशिश की। पंजाब सरकार ने पिछले छह महीनों में सात पत्र लिखे लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।’’

केसी (एम) के कोसे के मणि ने गैर-संचारी रोगों के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई और कहा कि यह देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इन बीमारियों में मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर और पुरानी श्वसन रोग शामिल हैं (जो) अब भारत में 60 प्रतिशत से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। 1990 में यह लगभग 38 प्रतिशत था ... ये बीमारियां हमारी आबादी को तेजी से प्रभावित कर रही हैं, खासकर उन लोगों को जो 30 और 40 साल की उम्र पार कर रही हैं।’’

उन्होंने कहा कि सरकार के मौजूदा प्रयास अपर्याप्त हैं। उन्होंने कहा कि स्वस्थ जीवन और बेहतर स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के तिरूची शिवा ने तमिलनाडु में च्रकवात फेंगल से हुए नुकसान का मुद्दा उठाया और केंद्र सरकार से तत्काल 2,000 करोड़ रुपये की सहायता जारी करने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा कि चक्रवात फेंगल के बाद आई भारी बारिश और बाढ़ से राज्य के 14 जिले प्रभावित हुए हैं और तकरीबन 1.5 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं।

उन्होंने कहा कि इससे करीब 70 परिवार विस्थापित हुए हैं, 40 लोगों की जान गई है और बड़ी संख्या में मवेशियों को नुकसान पहुंचा है।

शिवा ने कहा कि राज्य सरकार ने राष्ट्रीय आपदा मोचन बल और राज्य आपदा मोचन बल के साथ मिलकर तत्परता से बचाव व राहत अभियान चलाया।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने करीब 2,475 करोड़ रुपये के नुकसान का प्रारंभिक आकलन किया है लेकिन केंद्र सरकार से फिलहाल 2,000 करोड़ रुपये के मदद की मांग की है।

उन्होंने कहा कि इससे पहले जब राज्य में प्राकृतिक आपदा आई थी तब राज्य ने केंद्र सरकार से 37,000 करोड़ रुपये की मांग की थी लेकिन उसे सिर्फ 267 करोड़ रुपये ही दिए गए।

शिवा ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस मामले में संवेदनशीलता और निष्पक्षता के साथ तमिलनाडु के साथ खड़े होने का आह्वान किया।

बीजू जनता दल के सस्मित पात्रा ने बड़ी संख्या में न्यायिक मामलों के लंबित रहने का मुद्दा उठाया। राष्ट्रीय न्यायिक आंकड़ों का हवाला देते हुए, पात्रा ने कहा कि अपर्याप्त न्यायाधीश संख्या, न्यायिक रिक्तियों और प्रक्रियात्मक देरी के कारण भारत के विभिन्न अदालतों में 4.5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।

उन्होंने राष्ट्रीय मुकदमा नीति के कार्यान्वयन का सुझाव दिया जो 2010 से लंबित है।

तृणमूल कांग्रेस के सदस्य साकेत गोखले ने निजी क्षेत्र में विषाक्त कार्य संस्कृति का मुद्दा उठाया।

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए इन्हें नियंत्रित करने के लिए श्रम कानूनों की जरूरत है। इस क्षेत्र को विनियमित करने के लिए अभी हमारे पास कानून नहीं है।’’

राष्ट्रीय जनता दल के ए डी सिंह ने कहा कि सरकार को चीनी पेशेवरों को वीजा देने की प्रक्रिया में तेजी लानी चाहिए, जो विशेषज्ञ और अत्यधिक उत्पादक हैं। इससे निजी क्षेत्र को मदद मिलेगी, जो उन्हें रोजगार दे रहा है।

भारतीय जनता पार्टी की कल्पना सैनी ने स्कूलों में पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने का मुद्दा उठाया।

इसे समय की आवश्कता बताते हुए उन्होंने कहा कि आजकल बच्चे ज्यादातर इंटरनेट की दुनिया में सीमित हो चुके हैं और इससे उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

उन्होंने कहा, ‘‘पारंपरिक खेल ना केवल शारीरिक क्षमता बल्कि मानसिक दक्षता का भी विकास करते हैं।’’

ब्रजेन्द्र

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