नयी दिल्ली, 17 जून राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने बंदरगाह, पोताश्रय, घाटों और तलकर्षण संचालन को गैर-औद्योगिक परिचालन घोषित करने वाले पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के कार्यालय ज्ञापन पर रोक लगा दी। कार्यालय ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि यह उद्योगों की "लाल" श्रेणी में नहीं आते हैं।
मंत्रालय ने पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों की सुरक्षा के लिए इन क्षेत्रों में कुछ उद्योगों के संचालन पर रोक लगाने के मकसद से 1989 में अधिसूचनाएं जारी की थीं।
अधिसूचनाओं में उद्योगों की जगह को लेकर फैसले लेने के मकसद से उद्योगों को "लाल", "संतरी" और "हरित" श्रेणियों में बांटने की अवधारणा पेश की गयी थी।
एनजीटी के अध्यक्ष ए के गोयल के नेतृत्व वाली एक पीठ ने कहा कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन की दोबारा समीक्षा करने की और सवालों के घेरे में बने इलाके के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर बंदरगाह की स्थापना के प्रभाव का किसी विशेषज्ञ समिति द्वारा आकलन एवं मूल्यांकन करने की जरूरत है। समिति में कम से कम पांच प्रसिद्ध विशेषज्ञ होने चाहिए जिनमें समुद्री जीवविज्ञान/पारिस्थितिकी तंत्र और भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञ शामिल होंगे।
एनजीटी की पीठ ने कहा, "दूसरे सदस्य बंदरगाहों या अन्य से जुड़े विशेषज्ञ आकलन समिति से हो सकते हैं। इस तरह के अध्ययन के पूरा होने और नया फैसला लिए जाने तक, दहानू तालुका के पर्यावरण रूप से संवेदनशील इलाके पर लागू होने वाला विवादित निर्देश एवं कार्यालय ज्ञापन प्रभाव में नहीं आ सकता। यह साफ किया जाता है कि कोई भी पीड़ित पक्ष इस मामले में लिए गए किसी भी नये फैसले को चुनौती दे सकता है।"
पीठ ने कहा, "हमने नोटिस जारी करना जरूरी नहीं समझा क्योंकि हम केवल पहले से मौजूद उच्चतम न्यायालय के फैसले को पालन करने का निर्देश दे रहे हैं। हालांकि हम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को फैसला मंजूर ना होने पर अधिकरण में अपील करने की आजादी देते हैं।"
एनजीटी मत्स्यकर्मियों के संघ, नेशनल फिशवर्कर्स फोरम द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कहा गया है कि महाराष्ट्र के पालघर जिले का दहानू तालुका पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इलाका है और इसलिए यहां ‘लाल श्रेणी’ के उद्योगों को मंजूरी नहीं दी जानी चाहिये।
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