देश की खबरें | गैंगस्टर रोधी कानून को लागू करने के संबंध में नए दिशा-निर्देश लगभग तैयार: उत्तर प्रदेश

नयी दिल्ली, 12 दिसंबर उत्तर प्रदेश सरकार ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि वह उन मौजूदा आपराधिक मामलों पर फिर से विचार कर सकती है जिनमें उसके सख्त गैंगस्टर रोधी कानून को लागू किया गया था। राज्य ने यह भी बताया कि इसके प्रावधानों को कैसे लागू किया जाए, इस पर नए दिशानिर्देश तैयार किए जा रहे हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज से कहा था कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के कुछ प्रावधान ‘‘कठोर’’ प्रतीत होते हैं।

पीठ ने नटराज से कहा था, ‘‘कुछ प्रावधान दमनकारी हैं। सरकार को यह देखना चाहिए कि इन्हें कहां लागू किया जाना चाहिए और कहां नहीं।’’

इस पर, एएसजी ने कहा, ‘‘अदालत के पहले के आदेश के अनुपालन में सरकार उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों के संबंध में नए दिशानिर्देश तैयार कर रही है। यह लगभग तैयार हैं और हम इसे रिकॉर्ड पर रखेंगे। मौजूदा मामलों पर भी गौर किया जाएगा कि उनमें ये कानून लागू होना चाहिए या नहीं।’’

पीठ ने उनकी दलीलें दर्ज करते हुए कहा, ‘‘कुछ दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं और इसे हमारे विचार के लिए रिकॉर्ड में रखा जाएगा। जनवरी, 2025 के पहले सप्ताह में (मामले को) सूचीबद्ध किया जाएगा। अधिकारी संशोधित दिशा-निर्देशों के मद्देनजर मौजूदा मामलों पर फिर से विचार कर सकते हैं ताकि पता लगाया जा सके कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम को लागू करने की आवश्यकता है या नहीं।’’

शीर्ष अदालत गोरख नाथ मिश्रा की याचिका पर विचार कर रही है जिन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों के तहत उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

पीठ ने मिश्रा के मामले के साथ कानून के तहत आरोपों को रद्द करने का अनुरोध करने वाले एक अन्य मामले को भी जोड़ते हुए कहा कि राज्य सरकार नए प्रस्तावित दिशानिर्देशों के मद्देनजर सभी मामलों पर फिर से विचार करने के लिए सहमत हो गई है।

अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गईं, जिन पर अलग-अलग पीठ सुनवाई कर रही हैं।

वर्ष 1986 में लागू किए गए इस अधिनियम में कानून का उल्लंघन करने पर 2 से 10 साल की कैद और न्यूनतम 5,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। हालांकि, अगर कोई गैंगस्टर किसी सरकारी कर्मचारी या उसके परिवार के सदस्य के खिलाफ अपराध करता है तो न्यूनतम जेल अवधि बढ़कर तीन साल हो जाती है।

अधिनियम में यह भी कहा गया है कि अगर कोई लोक सेवक किसी गैंगस्टर को मदद या सहायता प्रदान करता है, तो उस लोक सेवक को 3 से 10 साल की जेल की सजा हो सकती है।

न्यायमूर्ति बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने चार दिसंबर को कहा कि यह कानून ‘‘कठोर’’ प्रतीत होता है।

न्यायालय एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने मई, 2023 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में कासगंज की एक जिला अदालत के समक्ष उसके खिलाफ लंबित कार्यवाही को रद्द करने के अनुरोध वाली उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था।

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