Delhi High Court: नगर निगम अधिकारियों से सड़कों से आवारा जानवरों को पूरी तरह हटाने की उम्मीद नहीं

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि नगर निगम अधिकारियों से राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों से बंदरों और कुत्तों सहित आवारा जानवरों को पूरी तरह से हटाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

Delhi High Court | PTI

नयी दिल्ली, 13 फरवरी : दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि नगर निगम अधिकारियों से राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों से बंदरों और कुत्तों सहित आवारा जानवरों को पूरी तरह से हटाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है. अदालत ने कहा है कि नगर निगम अधिकारियों का कर्तव्य यह सुनिश्चित करने के लिए ‘‘ठोस, ईमानदार और इष्टतम कदम’’ उठाना है कि आवारा जानवरों का पुनर्वास किया जाए और वे निवासियों, राहगीरों या सड़क पर चलने वाले वाहनों के लिए खतरा न बनें.

न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने समस्या से उचित तरीके से निपटने के लिए 2019 में अदालत द्वारा पारित निर्देशों का पालन करने में विफल रहने के लिए अधिकारियों के खिलाफ एक अवमानना याचिका का निपटारा करते हुए ये टिप्पणियां कीं. उच्च न्यायालय ने सात फरवरी को जारी अपने आदेश में कहा, ‘‘यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि नगर निगम अधिकारी दिल्ली की सड़कों और नगर निगम क्षेत्रों से सभी आवारा जानवरों को पूरी तरह से हटा देंगे, चाहे मवेशी हों या बंदर अथवा कुत्ते हों या अन्य जानवर.’’

उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने सितंबर 2019 के आदेश में कहा था, ‘‘हम प्रतिवादियों से उम्मीद करते हैं कि आवारा मवेशियों, आवारा कुत्तों, बंदरों आदि के संबंध में तुरंत एक समिति या अन्य प्रकार की संस्था का गठन किया जाएगा, ताकि वे इन आवारा मवेशियों, कुत्तों और बंदरों को नियंत्रित करने के लिए कोई योजना या नीति विकसित कर सकें. इसके बाद कार्रवाई तुरंत शुरू की जाएगी.''

इसने कहा था कि यह प्रतिवादियों का कर्तव्य है कि वे सरकारी अस्पतालों या औषधालयों में एंटी-रेबीज टीकाकरण की व्यवस्था करें। इसने यह भी कहा था कि इन अस्पतालों और औषधालयों में टीके जल्द से जल्द उपलब्ध कराये जाएं. अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई संबंधी याचिका में याचिकाकर्ता एस. सी. जैन ने आरोप लगाया कि 2019 के निर्देशों का पर्याप्त अनुपालन नहीं हुआ है. अदालत ने कहा कि स्थिति रिपोर्ट में शामिल दावे 2019 के दिशानिर्देशों के अनुपालन के लिए पर्याप्त हैं, जिन्हें सार्थकता की दृष्टि से देखा जाना चाहिए.

अदालत ने कहा, ‘‘किसी भी घटना में, प्रतिवादियों की ओर से दायर की गई स्थिति रिपोर्ट के मद्देनजर यह नहीं कहा जा सकता है कि 25 सितंबर, 2019 के आदेश में निहित निर्देशों के अनुपालन में उनकी ओर से अपमानजनक या जानबूझकर अवज्ञा की गई है. अवमानना और क्रियान्वयन में अंतर है.’’ इसने कहा, ‘‘यदि याचिकाकर्ता अभी भी उठाए गए कदमों से नाखुश है, तो वह उचित कार्यवाही के जरिये शिकायत दर्ज कराने के लिए स्वतंत्र होगा.’’

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