नयी दिल्ली, 21 नवंबर उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग के अंदर 12 नवंबर से फंसे 41 श्रमिकों को निकालने के लिए चलाए जा रहे बचाव अभियान को देश के लोग अपने टेलीविजन की स्क्रीन पर देख रहे हैं। ऐसे में पीटीआई- ने इतिहास के पन्नों में दर्ज ऐसे ही अन्य साहसिक बचाव अभियानों की सूची बनाई है, जिनकी चर्चा पूरी दुनिया में हुई थी।
वर्ष 2018 में थाईलैंड में एक गुफा से फुटबॉल के 12 खिलाड़ियों और उनके कोच को बचाने का अभियान हो या पश्चिम बंगाल के रानीगंज की कोयला खदान जलमग्न हो गई थी जिसमें इंजीनियर जसवंत गिल के अभिनव तरीके के जरिए 65 श्रमिकों को बचाया गया था। ऐसे बचाव अभियानों की सूची काफी लंबी है।
थाईलैंड गुफा बचाव अभियान-2018 : 23 जून, 2018 का थाईलैंड गुफा का मामला बेहद चर्चित रहा। यह घटना उस समय हुई जब वाइल्ड बोअर्स फुटबॉल टीम के 12 खिलाड़ी और उनके कोच उत्तरी थाईलैंड की थाम लुआंग नांग नॉन गुफा के परिसर की तलाश कर रहे थे। उस समय मौसम खराब हो गया और भारी बारिश होने से सुरंगों में भीषण जलभराव हो गया। इसके बाद बने बाढ़ के हालात में यह सभी खिलाड़ी इस गुफा में फंस गए। बाढ़ग्रस्त थाम लुआंग गुफा में फंसे इन सभी खिलाड़ियों को सकुशल निकालने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास किए गए थे। इस बचाव अभियान को दुनिया ने देखा था जिसने सभी को चौंका कर रख दिया था।
गुफा में बढ़ते पानी के कारण फंसे हुए खिलाड़ियों को खोजना था बेहद मुश्किल था। इस पूरे बचाव अभियान में कथित तौर पर 10 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए थे जिनमें विभिन्न देशों के 90 गोताखोर भी थे। यह पूरा अभियान करीब दो सप्ताह तक चला था जिसमें आठ दिनों के बाद ब्रिटेन के दो गोताखोरों ने 11 से 16 साल की उम्र के खिलाड़ियों और उनके कोच को 10 जुलाई को जीवत निकाल लिया था। गुफा के अंदर लगातार बढ़ते पानी के बीच में उनको खोज निकालकर बचा पाना बेहद मुश्किल हो जा रहा था।
इन सभी को केटामाइन दवा से बेहोश करके गुफा से एक-एक करके बाहर निकला गया था। हालांकि, इस बचाव अभियान के दौरान एकमात्र थाईलैंड की नौसेना के अधिकारी समन कुनान की जान चली गई थी। इस घटना को लेकर कई किताबें लिखी गयीं, वृत्तचित्र बनाए गए तथा 'जिनमें द रेस्क्यू', 'थर्टीन लाइव्स' और 'अगेंस्ट द एलीमेंट्स' जैसी फिल्मों का भी निर्माण किया गया। यह दुनिया के सबसे जटिल और आश्चर्यजनक बचाव अभियानों में से एक था जिसको इन सब कहानियों के जरिये दुनिया को बताया गया।
रानीगंज के खनिकों का बचाव अभियान-1989 : उत्तरकाशी सुरंग हादसे से पहले 13 नवंबर, 1989 में विश्व स्तर पर बचाव अभियान की चर्चा उस वक्त भी बहुत तेजी से हुई थी जब पश्चिम बंगाल के महाबीर कोलियरी, रानीगंज की कोयला खदान जलमग्न हो गई थी और उसमें 65 मजदूर फंस गए थे। वैसे तो इस खदान में अचानक पानी आने के कारण आई बाढ़ में कम से कम 232 खननकर्मी फंस गए थे, लेकिन 161 लोगों को तुरंत बचा लिया गया था। बाकी फंसे रहे लोगों में से छह मजदूरों की मौत भी हो गई थी।
इस दौरान एक बड़ा बचाव अभियान शुरू किया गया और फंसे हुए मजदूरों को बचाने के लिए कई टीम बनाई गईं थीं। इस पूरी घटना का 'मिशन रानीगंज: द ग्रेट भारत रेस्क्यू' नाम से फिल्म रूपांतरण भी किया गया जिसमें अभिनेता अक्षय कुमार ने अभिनय किया है। यह कहानी बेहद प्रेरणादायी भी है कि कैसे कोल इंडिया लिमिटेड के खनन इंजीनियर जसवंत गिल की प्रतिभा और नेतृत्व ने 65 श्रमिकों की जान बचाई।
इन टीम में से एक का नेतृत्व करते हुए खनन इंजीनियर जसवंत गिल करीब सात फुट ऊंचे और 22 इंच व्यास वाले स्टील कैप्सूल को बनाने और कैप्सूल को खदान में उतारने और खदान से बाहर निकालने के लिए एक नया बोरहोल बनाने का नया विचार लेकर आए थे। इस स्टील कैप्सूल के जरिए आखिरकार दो दिनों के अभियान के बाद एक-एक करके श्रमिकों को बाहर निकाल लिया गया था। फंसे लोगों को बचाने के लिए गिल खुद कैप्सूल में गए थे। गिल को 1991 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने सर्वोच्च नागरिक वीरता पुरस्कार 'सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक' से सम्मानित किया था।
प्रिंस की 2006 की बोरवेल दुर्घटना : इसी तरह की परेशान और इंजीनियरिंग को चुनौती देने वाली एक बोरवेल घटना 2006 में सामने आई थी। हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के हल्ढेरी गांव में 60 फुट गहरे एक बोरवेल में पांच साल का मासूम प्रिंस गिर गया था। उस समय बोरवेल में फंसे प्रिंस की सलामती को लेकर हर कोई दुआएं मांग रहा था। इस दौरान जब उसको निकालने की जद्दोजहद हो रही थी तो कुछ घंटों के कठोर प्रयासों के बाद बचाव टीम को पास में ही उतनी ही गहराई का एक और खाली बोरवेल नजर आ गया। इसके बाद दोनों बोरवेल को जोड़ने के लिए तीन फुट व्यास वाले लोहे के पाइप का इस्तेमाल किया गया और करीब 50 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद प्रिंस को आखिरकार सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया था।
चिली में खनिकों का बचाव अभियान -2010 : साल 2010 का चिली खनिकों को बचाव अभियान भी दुनिया में खूब चर्चा में रहा है। इस अभियान ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। पांच अगस्त, 2010 को सैन जोस सोने और तांबे की खदान के ढहने से 33 श्रमिक उसमें दब गए थे। सतह से 2000 फुट नीचे फंसे इन लोगों से संपर्क करने के लगातार प्रयास किए गए। आखिरी बचाव टीम ने 22 अगस्त को इसमें सफलता हासिल की जब उनको सतह से नीचे एक छेद करने में कामयाबी मिली। इसके बाद उनको भोजन, पानी और दवा भेजने का काम किया जा सका। खदान में फंसे लोगों की तरफ से अंग्रेजी में एक संदेश बचाव टीम को भेजा गया जिसका हिंदी अनुवाद था ''हम 33 लोग हैं, जो ठीक हैं''। वहीं, 13 अक्टूबर को, 69 दिन बाद, विश्व स्तर पर प्रसारित इस बचाव कार्यक्रम में 33 खननकर्मियों को चिली के राष्ट्रीय ध्वज के रंग में रंगे कैप्सूल के जरिये एक-एक करके सुरंग से बचाते देखा गया।
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