
नयी दिल्ली, दो फरवरी लेखक-नाटककार राजेश तलवार ने एक किताब लिखी है जिसके बारे में उनका कहना है कि यह महात्मा गांधी के ‘‘हिंद स्वराज’’ की समालोचना है और आधुनिकता, औद्योगीकरण एवं पश्चिमी विचारों की उनकी अस्वीकृति में विरोधाभासों और खामियों को उजागर करती है।
‘‘हिंद स्वराज’’ को गांधीजी की सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में से एक माना जाता है, जिसे उन्होंने नवंबर 1909 में इंग्लैंड से दक्षिण अफ्रीका लौटने के दौरान लिखा था। 1910 में अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित यह पुस्तक भारतीयों के लिए साम्राज्यवाद की बेड़ियों से मुक्त होने के महत्व को समझने का एक स्पष्ट आह्वान है।
तलवार की पुस्तक ‘‘द महात्माज मेनिफेस्टो’’ ओम पब्लिकेशन्स द्वारा प्रकाशित की गई है। तलवार के अनुसार, गांधी एक जटिल व्यक्तित्व थे।
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि मैं गांधी और भारतीय स्वतंत्रता में उनके योगदान का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। साथ ही, गांधी में बहुत कुछ ऐसा है जिसे खारिज करने की आवश्यकता है, और इस संबंध में 'हिंद स्वराज' में व्यक्त उनके कई विचारों को नजरअंदाज करने और पूरी तरह से त्यागने की आवश्यकता है।’’
तलवार कहते हैं कि जब उन्होंने पहली बार ‘‘हिंद स्वराज’’ पढ़ी, तो वे इसकी विषय-वस्तु से चौंक गए। उन्होंने कहा, ‘‘गांधी के कई विचार स्पष्ट रूप से न केवल पुरातनपंथी थे, बल्कि पितृसत्तात्मक और प्रतिगामी भी थे।’’
लेखक कहते हैं कि गांधी में प्रशंसा करने लायक बहुत कुछ है और उनकी महानता पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन जहां तक ‘‘हिंद स्वराज’’ का सवाल है, तो इसकी ‘‘पूरी तरह से आलोचना की जानी चाहिए और उसे खारिज किया जाना चाहिए।’’
उन्होंने यहां तक दावा किया, ‘‘अगर गांधी के हाथ में होता तो वह रेलवे और औद्योगीकरण को खत्म कर देते। वह मशीनों के खिलाफ थे, उन्हें शहरों से नफरत थी। साथ ही, वह खुद बेहतरीन अंग्रेजी बोलते और लिखते थे, लेकिन आम तौर पर भारतीयों के अंग्रेजी सीखने के खिलाफ थे।’’
हालांकि, तलवार कहते हैं कि अहिंसा पर गांधी के विचार बहुत गहरे हैं और आदर्श रूप से, उन्हें न केवल भारत के भविष्य को बल्कि दुनिया के भविष्य को आकार देना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘ 'हिंद स्वराज' का यह विशेष अध्याय शानदार अंतर्दृष्टि से भरा है। जब मैं गांधी या 'हिंद स्वराज' में उनके लेखन की आलोचना करता हूं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं देश के लिए उनके द्वारा किए गए अच्छे कामों को महत्व नहीं देता।’’
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि मैं गांधी और भारतीय स्वतंत्रता में उनके योगदान का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। साथ ही, गांधी में बहुत कुछ ऐसा है जिसे खारिज करने की आवश्यकता है, और इस संबंध में 'हिंद स्वराज' में व्यक्त उनके कई विचारों को नजरअंदाज करने और पूरी तरह से त्यागने की आवश्यकता है।’’
तलवार कहते हैं कि जब उन्होंने पहली बार ‘‘हिंद स्वराज’’ पढ़ी, तो वे इसकी विषय-वस्तु से चौंक गए। उन्होंने कहा, ‘‘गांधी के कई विचार स्पष्ट रूप से न केवल पुरातनपंथी थे, बल्कि पितृसत्तात्मक और प्रतिगामी भी थे।’’
लेखक कहते हैं कि गांधी में प्रशंसा करने लायक बहुत कुछ है और उनकी महानता पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन जहां तक ‘‘हिंद स्वराज’’ का सवाल है, तो इसकी ‘‘पूरी तरह से आलोचना की जानी चाहिए और उसे खारिज किया जाना चाहिए।’’
उन्होंने यहां तक दावा किया, ‘‘अगर गांधी के हाथ में होता तो वह रेलवे और औद्योगीकरण को खत्म कर देते। वह मशीनों के खिलाफ थे, उन्हें शहरों से नफरत थी। साथ ही, वह खुद बेहतरीन अंग्रेजी बोलते और लिखते थे, लेकिन आम तौर पर भारतीयों के अंग्रेजी सीखने के खिलाफ थे।’’
हालांकि, तलवार कहते हैं कि अहिंसा पर गांधी के विचार बहुत गहरे हैं और आदर्श रूप से, उन्हें न केवल भारत के भविष्य को बल्कि दुनिया के भविष्य को आकार देना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘ 'हिंद स्वराज' का यह विशेष अध्याय शानदार अंतर्दृष्टि से भरा है। जब मैं गांधी या 'हिंद स्वराज' में उनके लेखन की आलोचना करता हूं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं देश के लिए उनके द्वारा किए गए अच्छे कामों को महत्व नहीं देता।’’
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