देश की खबरें | महाराष्ट्र चुनाव: परली में धनंजय मुंडे को मराठा मतदाताओं की एकजुटता का मुकाबला करना होगा

छत्रपति संभाजीनगर, 28 अक्टूबर महाराष्ट्र के कृषि मंत्री धनंजय मुंडे को परली विधानसभा क्षेत्र में मराठा मतदाताओं के एकजुट होने का प्रभावी ढंग से मुकाबला करना होगा। यह क्षेत्र दिवंगत गोपीनाथ मुंडे का गृहनगर है। दिलचस्प बात यह है कि दशकों बाद यहां से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं है।

महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुनाव 20 नवंबर को होंगे और मतों की गिनती तीन दिन बाद होगी।

महज चार महीने पहले, मराठा कारक की बीड लोकसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार पंकजा मुंडे की मामूली मतों के अंतर से हार में एक भूमिका थी, जिसमें परली निर्वाचन क्षेत्र भी शामिल है। पंकजा मुंडे, धनंजय की चचेरी बहन हैं।

सोयाबीन की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से प्रभावित ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र परली में मराठा आरक्षण की भावना एक मजबूत कारक बनी हुई है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ मराठों में नाराजगी का मुकाबला करने के लिए धनंजय को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय का समर्थन सुनिश्चित करना होगा।

शरद पवार ने एक रणनीतिक कदम के तहत अजित पवार के करीबी एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) उम्मीदवार धनंजय मुंडे के खिलाफ राकांपा (शरद चंद्र पवार) के उम्मीदवार के तौर पर राजेसाहेब देशमुख को मैदान में उतारा है। परली दिवंगत गोपीनाथ मुंडे का गृहनगर है, जिन्हें मराठवाड़ा क्षेत्र में भाजपा के विस्तार का श्रेय दिया जाता है।

भाजपा द्वारा पंकजा को विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) बनाये जाने और धनंजय के पहले से ही राकांपा खेमे का एक सदस्य होने के कारण, इस बार परली निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा का कोई प्रतिनिधि नहीं होगा।

पंकजा मुंडे ने 2009 और 2014 के चुनावों में परली में दो जीत दर्ज की थी। 2019 में वह तीसरी बार जीत दर्ज करने से चूक गईं, जब धनंजय मुंडे ने उन्हें 30,701 मतों से हरा दिया।

पिछले पांच सालों में भाई-बहन की जोड़ी ने अपने मतभेद भुला दिए हैं। राकांपा (शरद चंद्र पवार) के उम्मीदवार देशमुख ने दावा किया कि धनंजय परली में किसानों के मुद्दों को हल करने में विफल रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि स्थानीय लोग डर और असुरक्षा के माहौल में जी रहे हैं।

हालांकि, धनंजय को लगता है कि पिछले कुछ महीनों में मराठा कारक की तीव्रता कम हुई है। उन्होंने ‘पीटीआई-’ से कहा कि लोकसभा चुनाव में देखी गई जातिगत राजनीति एक अपवाद थी, और अतीत में बीड संसदीय क्षेत्र से विभिन्न जातियों के उम्मीदवारों की जीत का उल्लेख किया। उन्होंने मराठा आरक्षण नेता मनोज जरांगे का उल्लेख किए बिना स्वीकार किया कि मराठा आरक्षण आंदोलन से बीड अछूता नहीं है।

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