नयी दिल्ली, 13 दिसंबर लोकसभा में शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस सदस्य महुआ मोइत्रा की कुछ टिप्पणियों पर सत्तापक्ष के सदस्यों ने हंगामा किया जिसके कारण सदन की कार्यवाही दो बार कुछ देर के लिए स्थगित करनी पड़ी।
मोइत्रा ने न्यायमूर्ति बी एच लोया की मृत्यु ‘समय से बहुत पहले’ होने की बात कही जिस पर सदन में हंगामा हुआ और केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू ने उन्हें ‘उचित संसदीय कार्रवाई’ की चेतावनी दी।
मोइत्रा ने सदन में ‘संविधान के 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पर चर्चा’ में भाग लेते हुए केंद्र सरकार पर संविधान को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘पिछले दस वर्ष में राजनीतिक ओहदेदारों ने लोकतंत्र को क्रमिक तरीके से नुकसान पहुंचाया है।’’
इसी क्रम में उन्होंने सदन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के भाषण का जिक्र करते हुए कहा कि सिंह ने 1976 के दशक में कांग्रेस के शासनकाल में न्यायमूर्ति एच आर खन्ना से जुड़े घटनाक्रम का उल्लेख किया था।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं सभी को याद दिलाना चाहती हूं कि न्यायमूर्ति खन्ना 1976 के बाद भी 32 साल तक रहे जिसमें अधिकतर समय कांग्रेस की सरकार थी और उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी।’’
मोइत्रा ने एक अन्य दिवंगत न्यायाधीश का नाम लेते हुए सरकार पर निशाना साधा और कहा कि ‘‘न्यायमूर्ति लोया तो अपने समय से बहुत पहले इस दुनिया से विदा हो गए।’’
तृणमूल कांग्रेस सांसद के भाषण के बाद सत्तापक्ष के सदस्यों ने इस मुद्दे को उठाते हुए आपत्ति जताई। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने जब यह मुद्दा उठाने का प्रयास किया तो पीठासीन सभापति कुमारी सैलजा ने उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी।
बाद में आसन पर अध्यक्ष ओम बिरला आसीन हुए और उनके अनुमति देने के बाद दुबे ने कहा कि न्यायमूर्ति बी एच लोया की मौत का जिक्र तृणमूल कांग्रेस सांसद ने किया है, जबकि उनकी असामयिक मौत की पुष्टि अन्य न्यायाधीशों ने भी की थी।
भाजपा सांसद ने मोइत्रा के इस बयान और एफसीआरए को लेकर की गई टिप्पणी को प्रमाणित करने को कहा।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने कहा, ‘‘सदस्य ने न्यायमूर्ति लोया के बारे में जो कहा वह बहुत गंभीर विषय है। न्यायपालिका में सारा मामला खत्म हो चुका है। यह एक ‘सेटल्ड केस (सुलझ चुका मामला)’ है...इसमें किसी हस्तक्षेप का सवाल ही नहीं उठता।’’
उन्होंने कहा कि सदस्य ने जिस तरह का बयान दिया है, उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
रीजीजू ने चेतावनी भरे अंदाज में कहा, ‘‘अध्यक्ष ने मामले को संज्ञान में लिया है। मैं सदन को सूचित करना चाहता हूं कि इस पर कार्रवाई होगी। हम लोग की तरफ से उचित संसदीय कार्रवाई की जाएगी। इस तरह की टिप्पणी पर आप बच नहीं सकते। यह गलत परंपरा है।’’
मंत्री के बयान पर तृणमूल कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के सदस्य हंगामा करने लगे। सत्तापक्ष के सदस्य भी तृणमूल सांसद के बयान पर आपत्ति जता रहे थे।
दोनों पक्षों के हंगामे के कारण अध्यक्ष ने शाम करीब 5.23 बजे कार्यवाही आधे घंटे के लिए स्थगित कर दी।
बैठक फिर शुरू होने पर पीठासीन सभापति दिलीप सैकिया ने भाजपा सदस्य जगदंबिका पाल को चर्चा में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। पाल अपनी बात शुरू कर पाते, इसी बीच विपक्षी सदस्यों द्वारा हंगामा शुरू कर दिया गया।
सैकिया ने हंगामा कर रहे सदस्यों को समझाने का प्रयास किया। किंतु उनकी अपील का असर न होते देख उन्होंने सदन की बैठक एक बार फिर शाम छह बजकर पंद्रह मिनट तक के लिए स्थगित कर दी।
बाद में महुआ मोइत्रा ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा कि ‘‘लोग यह रिपोर्टिंग कर रहे हैं कि संसदीय कार्य मंत्री ने मुझे चेतावनी दी.....बल्कि मुझे धमकाने के लिए उन्हें कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। उनके बयान हटाये जाने चाहिए, मेरे नहीं।’’
इस मुद्दे पर दो बार कुछ देर कार्यवाही स्थगित होने के बाद शाम 6.15 बजे बैठक पुन: शुरू हुई तो तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय और कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल ने व्यवस्था का प्रश्न उठाते हुए कहा कि संसदीय कार्य मंत्री रीजीजू ने महिला सदस्य के खिलाफ कार्रवाई की धमकी दी है, इस पर अध्यक्ष को निर्णय लेना चाहिए।
अध्यक्ष बिरला ने आश्वासन दिया कि वह रिकॉर्ड मंगाकर पड़ताल करेंगे।
इससे पहले मोइत्रा ने अपने भाषण में कहा कि पिछले दस साल में इस सरकार के शासनकाल में बड़ी संख्या में लोगों ने महसूस किया कि संविधान खतरे में है।
उन्होंने दावा किया कि सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार अपने बचाव में केवल इंदिरा गांधी के समय लगाए गए अपातकाल की आड़ लेते रहते हैं।
मोइत्रा ने कहा कि इस सरकार की ‘हजार कट’ वाली नीतियों ने देश की ईडी और सीबीआई जैसी संस्थाओं को प्रभावित किया है।
ब्रिटेन में मार्गरेट थैचर के शासन काल में सामाजिक सुरक्षा नीतियों को राजनीतिक वैज्ञानिक पॉल पियर्सन द्वारा ‘हजार कट’ वाली नीतियां करार दिए जाने का उल्लेख मिलता है।
मोइत्रा ने आरोप लगाया कि इन दोनों एजेंसियों द्वारा दर्ज 95 प्रतिशत मामले विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा शासित राज्यों की सरकारों में न्याय को क्षति पहुंचाने में एक दूसरे से होड़ मची है।
तृणमूल सांसद ने कहा कि मणिपुर में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया है।
उन्होंने कहा कि अब न्यायपालिका और मीडिया की लोकतंत्र को बचाने की अधिक जिम्मेदारी है।
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