विकासशील देशों के पास इस संकट से निपटने के लिये मजबूत अर्थव्यवस्था, बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएं और बड़े पैमाने पर जांच करने की सुविधा नहीं हैं, जोकि इस महामारी से छुटकारा पाने के लिये बेहद जरूरी हैं।
यूरोपीय देशों में जहां पाबंदियों से निकलने की रणनीति पर जोर-शोर से चर्चाएं हो रही हैं, वहीं संकटग्रस्त और भ्रष्टाचार तथा गरीबी से घिरे देशों के लिए अभी ऐसा सोचना भी मुमकिन नजर नहीं आ रहा।
लेबनान एक छोटा सा देश है। दिवालियेपन की कगार पर खड़े इस देश की स्वास्थ्य प्रणाली खस्ताहाल है और आबादी काम करने को बेचैन। देश में लगभग एक महीने लागू लॉकडाउन के कारण हजारों लोग गरीबी के मुहाने पर पहुंच गए हैं, जिससे सरकार पर पाबंदियों पर ढील देने का दबाव पड़ रहा है।
लेबनान में चिकित्सा संसाधन सीमित हैं, जिसके चलते डॉक्टरों को अपनी जान खतरे में डालकर लगातार काम करना पड़ रहा है।
यही हाल कई अन्य विकासशील देशों का है। दिक्कत यह है कि अगर लॉकडाउन में छूट दी जाए तो संक्रमण के मामले बढ़ सकते हैं, जिसके चलते बिस्तरों और जरूरी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे अस्पतालों में भीड़ बढ़ने लगेगी।
वहीं अगर पाबंदियां बरकरार रखी जाएं तो सामाजिक उथल-पुथल और आर्थिक नुकसान का खतरा मुंह बाय खड़ा नजर आता है।
वर्ल्ड बैंक में मध्य-पूर्व तथा उत्तरी अफ्रीकी मामलों के मुख्य अर्थशास्त्री राबाह अरेज्की ने कहा कि इस समय में अपर्याप्त जांच और पारदर्शिता की कमी गलत कदम उठाने की गुंजाइश बढ़ा सकती है।
उन्होंने कहा, ''मुझे लगता है कि बिना तैयारी के लॉकडाउन से बाहर आने पर फायदा होने के बजाय और नुकसान होगा।''
ऐसा नहीं है कि पश्चिमी देश इस नुकसान से अछूते हैं बल्कि उन्हें भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, लेकिन इन देशों में सरकार ने कारोबारों और लोगों को राहत पहुंचाने के लिये कई बड़े कदम उठाए हैं।
वहीं पाकिस्तान, मिस्र, यमन, लीबिया, सीरिया और कई अफ्रीकी देशों में हालात काफी जुदा हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमीर देशों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से गरीब देशों का कर्ज माफ करने की अपील की है। आईएमएफ ने पाकिस्तान को कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिये डेढ़ अरब अमेरिकी डॉलर देने का ऐलान किया है।
वहीं अरब जगत के सबसे अधिक आबादी वाले देश मिस्र में हर तीन में से एक व्यक्ति गरीबी में जी रहा है। मिस्र की सरकार ने आंशिक लॉकडाउन लागू कर रखा है। इसके तहत रात में कर्फ्यू रहता है। सरकार को डर है कि पूरी तरह लॉकडाउन लागू करने से पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी।
इसके अलावा यमन, लीबिया और सीरिया के सामने कई साल से जारी युद्ध के चलते मानवीय संकट खड़ा हुआ है। ऐसे में इन देशों में कोरोना की जांच के अभाव का अभाव है जिसके चलते खतरा बढ़ने की काफी गुंजाइश है। इसके अलावा इन देशों में पेशेवर और प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मियों का भी अभाव है।
वहीं, अफ्रीकी महाद्वीप के 54 में से 52 देशों में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले सामने आए हैं। ऐसे में यहां लॉकडाउन पहले से ही कमजोर खाद्य आपूर्ति की कमर तोड़ता हुआ नजर आ रहा है।
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