नयी दिल्ली, 10 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे के लिए हरियाणा में अधिग्रहित की गई जमीन के कुछ मालिकों को देय मुआवजा राशि बढ़ाई गई थी।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के नवंबर 2021 के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें झज्जर के जिला राजस्व अधिकारी-सह-भूमि अधिग्रहण कलेक्टर (एलएसी) के मुआवजा राशि बढ़ाने के आदेश को रद्द कर दिया गया था।
एलएसी ने 15 सितंबर 2020 को पारित एक आदेश में मुआवज राशि बढ़ाकर 19,91,300 रुपये प्रति एकड़ कर दी थी, साथ ही एक जैसी भूमि वाले मालिकों को उच्च न्यायालय द्वारा पूर्व में दिए गए वैधानिक लाभ भी दिए।
कुछ भूमि मालिकों ने उच्च न्यायालय के नवंबर 2021 के फैसले को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील की थी जिस पर ही शीर्ष अदालत ने यह फैसला सुनाया।
पीठ ने इस बात पर गौर किया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत नवंबर 2004 को अधिसूचना जारी कर झज्जर जिले में अपीलकर्ताओं की भूमि एक्सप्रेसवे के लिए अधिग्रहित की गई थी और मार्च 2006 में मुआवजा आदेश जारी कर 12.50 लाख रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा निर्धारित किया गया था।
इसने इस बात पर भी गौर किया कि मुआवजा आदेश से असंतुष्ट एक जैसी भूमि वाले कुछ मालिकों ने झज्जर के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के समक्ष मुआवजा बढ़ाने के लिए एक संदर्भ दिया लेकिन उसे खारिज कर दिया गया।
पीठ ने इस पर भी गौर किया कि ऐसे भूमि मालिकों ने उच्च न्यायालय का रुख किया जिसने मई 2016 में वैधानिक लाभों के साथ मुआवजे को बढ़ाकर 19,91,300 रुपये प्रति एकड़ कर दिया।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 30 जून 2016 को याचिकाकर्ताओं ने झज्जर के एलएसी के समक्ष अधिनियम की धारा 28-ए के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसने व्यवस्था दी कि याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय के मई 2016 के फैसले का लाभ पाने के हकदार थे और मुआवजा राशि बढ़ा दी।
अधिनियम की धारा 28-ए, न्यायालय के आदेश के आधार पर मुआवजे की राशि के पुनर्निर्धारण से संबंधित है।
यह मामला फिर से उच्च न्यायालय के समक्ष आया जिसने एलएसी के आदेश को रद्द कर दिया।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि यह माना गया था कि धारा 28-ए के उद्देश्यों और कारणों के विवरण से पता चलता है कि प्रावधान के अधिनियमन के पीछे अंतर्निहित मकसद समान या समान गुणवत्ता वाली भूमि के लिए मुआवजे के भुगतान में असमानता को दूर करना था।
पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए....25 नवंबर 2021 के उच्च न्यायालय के आक्षेपित फैसले और आदेश को रद्द कर दिया जाता है और 15 सितंबर 2020 के एलएसी के आदेश को बरकरार रखा जाता है।’’
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