चेन्नई, 20 अप्रैल तमिलनाडु में एक अस्थि रोग विशेषज्ञ को आधी रात में फावड़ा उठाना पड़ गया क्योंकि उसे कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वाले अपने न्यूरोसर्जन मित्र को दफनाना था।
दरअसल, डॉक्टर की अंत्येष्टि के लिए कई लोग आए थे लेकिन इसका विरोध कर रही भीड़ ने उन पर हमला कर दिया और सभी लोगों को शव को कब्रिस्तान में ही छोड़ कर भागने को मजबूर होना पड़ा।
इस मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने आज चेतावनी दी कि यदि ऐसी घटनाएं रोकने में सरकारें असफल रहती हैं तो ‘‘उपयुक्त जवाबी कदम उठाये जाएंगे।’’
लोग विरोध इसलिए कर रहे थे कि उन्हें लगता है कि कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति का शव उनके क्षेत्र में दफनाने से वहां भी संक्रमण फैल जाएगा। हालात ऐसे हो गए कि जिस एम्बुलेंस में 55 वर्षीय न्यूरोसर्जन का शव कब्रिस्तान तक लाया गया था भीड़ ने उसके कांच तोड़ दिए और ताबूत तक को नहीं बख्शा।
भीड़ ने ईंट, पत्थर, बोतल और लाठियों से वहां मौजूद सभी लोगों पर हमला किया और उन्हें वहां से भगा दिया। पुलिस के अनुसार इस घटना में दो एम्बुलेंस चालकों सहित सात लोगों के साथ मारपीट की गई, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए।
सूत्रों ने बताया कि इस सिलसिले में 20 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और स्थानीय अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।
वहीं, डॉक्टर की अंत्येष्टि में हुई हिंसा पर स्वत: संज्ञान लेते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने आज तमिलनाडु सरकार और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर उसे 28 अप्रैल तक जवाब देने को कहा।
यह स्पष्ट करते हुए कि गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है न्यायमूर्ति एम. सत्यनारायणन और न्यायमूर्ति एम. निर्मल कुमार की विशेष पीठ ने मीडिया में इस संबंध में आयी खबरों के आधार पर इस पर स्वत: संज्ञान लिया।
आईएमए ने अपने बयान में कहा है कि यदि राज्य सरकारों के पास ऐसी घटनाओं को रोकने की शक्ति नहीं है तो वे ‘‘शासन करने की नैतिकता खो चुकी हैं।’’
डॉक्टरों पर हो रहे हमलों के संदर्भ में आईएमए ने कहा कि उकसावों के बावजूद हम धैर्य रख रहे हैं। ‘‘लेकिन हमारा धैर्य अनंत नहीं है। गालियां, हिंसा, थूकना, पत्थर खाना, सोसायटियों और आवासीय कालोनियों में प्रवेश पर पाबंदी, अभी तक बर्दाश्त करते रहे हैं, क्योंकि हमने सरकारों से आशा की कि वे अपना कर्तव्य निभाएंगी।’’
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजन शर्मा ने कहा, ‘‘अगर वे अपने संवैधानिक कर्तव्य निभाने में असफल हैं तो संभवत: यह सामान्य समय नहीं है। मरणोपरांत भी सम्मान नहीं मिलना, इससे बड़ा कोई पाप नहीं है।’’
आईएमए के महासचिव आर.वी. अशोकन ने कहा कि यह बहुत दुखद है कि गैर-मेडिकल कारणों से और सेवाएं बंद हो जाएंगी।
उन्होंने चेतावनी दी, ‘‘राज्य सरकारें अपने संवैधानिक कर्तव्य निभाएं। अगर वे असफल रहती हैं तो मेडिकल पेशेवरों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए आईएमए उपयुक्त जवाबी कदम उठाने को बाध्य होगा।’’
सर्जन डॉ के प्रदीप कुमार ने पीटीआई से कहा कि ऐसा किसी के साथ भी नहीं होना चाहिए चाहे वह डॉक्टर हों या आम आदमी।
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