मुंबई, 18 जनवरी बंबई उच्च न्यायलय ने मंगलवार को कोल्हापुर की उन दो बहनों (रेणुका शिंदे और सीमा गावित) की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया, जिन्हें 1990 से 1996 के बीच 14 बच्चों का अपहरण करने और इनमें से पांच की हत्या करने के अपराध में कोल्हापुर की एक अदालत ने दोषी करार दिया था।
न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एसवी कोतवाल की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र और महाराष्ट्र सरकार ने दोनों महिलाओं की मौत की सजा पर अमल में अत्यधिक विलंब किया है जबकि राष्ट्रपति के समक्ष दाखिल उनकी दया याचिका 2014 में ही खारिज हो गई थी।
पीठ ने कहा कि ऐसी देरी कर्तव्यों के निर्वहन के मामले में केंद्र और राज्य सरकार का ‘ढीला रवैया’ उजागर करती है तथा इसी वजह से दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलना पड़ा है।
रेणुका शिंदे और सीमा गावित अक्तूबर 1996 से हिरासत में हैं। उन्होंने 2014 में उच्च न्यायालय से अपनी मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने की अपील की थी। इस बाबत दोनों ने उनकी दया याचिकाओं के निस्तारण में बेवजह होने वाले विलंब का हवाला दिया था। शिंदे और गावित ने दावा किया था कि ऐसा विलंब जीवन जीने के उनके मौलिक अधिकार का हनन करता है।
इस याचिका में दोनों महिलाओं ने कहा था कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के उनकी मौत की सजा पर मुहर लगाने के बाद वे 13 साल से भी अधिक समय से पल-पल मौत के डर के साये में जी रही हैं।
शिंदे और गावित ने याचिका में कहा कि दया याचिकाओं पर निर्णय में विलंब की जिम्मेदारी पूरी तरह से कार्यपालिका की है, जिसमें महाराष्ट्र के राज्यपाल, राज्य सरकार, गृह मंत्रालय और राष्ट्रपति तक शामिल हैं।
पीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा, ‘सरकारी तंत्र ने मामले में उदासीनता दिखाई। फाइलों का आदान-प्रदान सुनिश्चित करने में सात साल से अधिक समय लग गया, जो अस्वीकार्य है। कर्तवयों की यही अवहेलना मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने का कारण है।’
कोल्हापुर की सत्र अदालत ने 2001 में शिंदे और गावित को बच्चों के अपहरण और हत्या का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई थी। बंबई उच्च न्यायालय ने 2004 में औरउच्चतम न्यायालय ने 2006 में दोनों की मौत की सजा बरकरार रखी थी।
दोषी बहनों ने 2008 में राज्यपाल के सामने दया याचिका दाखिल की थी, जो 2012-13 में खारिज हो गई। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रपति के सामने दया की गुहार लगाई। हालांकि, राष्ट्रपति ने भी 2014 में उनकी दया याचिका ठुकरा दी थी।
उच्च न्यायालय में दाखिल याचिका में दोनों बहनों ने दावा किया कि उन्होंने 25 साल की हिरासत में बहुत कुछ झेला है। शिंदे और गावित ने कहा कि इतना लंबा समय जेल की सलाखों के पीछे बिताना उम्रकैद की सजा काटने जैसा है। लिहाजा, अदालत को उनकी रिहाई का आदेश जारी करना चाहिए।
हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता संदेश पाटिल ने कहा कि राज्य सरकार से दोषियों की दया याचिका मिलते ही इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया था। उन्होंने दावा किया कि दया याचिका के निस्तारण में कोई देरी नहीं हुई।
पाटिल ने बताया कि राष्ट्रपति ने दया याचिका पर दस महीने के भीतर फैसला सुनाया। इसके बाद उच्च न्यायालय ने दोनों दोषियों की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उनकी मौत की सजा उम्रकैद में बदल दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि दोनों महिलाओं ने जघन्य अपराध किया है, जिसके चलते उन्हें अपनी आखिरी सांस तक जेल की सलाखों के पीछे ही रहना होगा।
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