देश की खबरें | तेलंगाना के गठन का नेतृत्व करने वाले केसीआर लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने से चूके

हैदराबाद, तीन दिसंबर अलग तेलंगाना राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने वाले के. चंद्रशेखर राव विधानसभा चुनाव में बीआरएस को शिकस्त मिलने के बाद मुख्यमंत्री के रूप में लगातार तीसरा कार्यकाल हासिल करने से चूक गए।

बीआरएस को लगा यह झटका तेलंगाना से बाहर पार्टी के प्रभाव का विस्तार करने और राष्ट्रीय फलक पर उपस्थिति दर्ज कराने की इसकी महत्वाकांक्षा को नुकसान पहुंचा सकता है।

राव को केसीआर के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को पिछले साल भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) नाम दिया था।

उन्होंने बीआरएस की उपस्थिति मजबूत करने के लिए पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में मई में पार्टी का विस्तार अभियान शुरू किया था।

कांग्रेस समर्थक रहने से लेकर तेलंगाना गौरव के प्रतीक बनने तक, केसीआर ने राज्य एवं केंद्र की राजनीति की जटिलताओं का मुकाबला किया।

अलग राज्य के रूप में 2014 में तेलंगाना का गठन होने के साथ वह एक प्रमुख क्षेत्रीय नेता के रूप में उभरे। इसके बाद 2014 और 2018 के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की।

राव ने 30 नवंबर को हुए मतदान से पहले, इस साल अगस्त में ही 119 सदस्यीय विधानसभा के लिए 115 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इस रणनीति से उन्हें नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि पार्टी के उम्मीदवारों को सत्ता विरोधी लहर ने अपनी गिरफ्त में ले लिया।

केसीआर ने अक्सर ही परिवारवादी शासन, भाई-भतीजावाद, और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि मतदाताओं ने इन आरोपों पर गौर किया होगा।

मेडक जिले के चिंतामादका गांव के रहने वाले केसीआर (69) ने भारतीय युवा कांग्रेस के एक साधारण सदस्य के रूप में अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत की थी।

एन टी रामा राव (एनटीआर) द्वारा स्थापित तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) में राव 1983 में शामिल हुए थे। उन्होंने पहली बार उसी वर्ष चुनाव लड़ा जिसमें उन्हें सिद्दिपेट सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार से शिकस्त मिली।

उन्होंने 1985 में जीत हासिल की और जीत का यह सिलसिला जारी रखा। राव ने करीमनगर, मेडक, और महबूबनगर लोकसभा सीट पर पांच बार जीत हासिल की, जिनमें दो उपचुनाव भी शामिल हैं।

एनटीआर सरकार में मंत्री बनने के बाद और फिर उनके दामाद एन चंद्रबाबू नायडू की सरकार में मंत्री रहने के बाद, राव ने आंध्र प्रदेश विधानसभा में डिप्टी स्पीकर के रूप में भी सेवा दी।

हालांकि, अलग तेलंगाना राज्य की उनकी आकांक्षा बनी रही। राव ने अलग राज्य के रूप में तेलंगाना के गठन के प्रति नायडू के पूर्वाग्रह रखने का उल्लेख करते हुए 2001 में तेदेपा छोड़ दी।

उन्होंने टीआरएस की स्थापना की, अलग राज्य के लिए आंदोलन में नयी जान फूंकी जो 1960 के दशक के अंत से सुसुप्त अवस्था में थी।

कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर और अलग तेलंगाना राज्य का संकल्प लेने के साथ उन्होंने उनके साथ 2004 का लोकसभा चुनाव लड़ा। राव पांच सीट हासिल कर केंद्र में मंत्री बने थे लेकिन अलग तेलंगाना राज्य के गठन के लिए कांग्रेस के गंभीर नहीं होने का आरोप लगाते हुए उससे किनारा कर लिया।

टीआरएस ने 2009 के विधानसभा चुनावों में तेदेपा के साथ गठजोड़ किया, जिसने तेलंगाना के गठन के लिए बेशर्त समर्थन करने का वादा किया था। आखिरकार, 2014 में अलग तेलंगाना प्रदेश का गठन हुआ।

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