अफगानिस्तान की राजधानी काबुल की गलियां बदल रही हैं. 15 अगस्त 2021 को जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था, उसके बाद से यह शहर अब कहीं ज्यादा साफ-सुथरा और सुरक्षित लेकिन उदास नजर आता है.तालिबान के नेतृत्व में काबुल शहर के प्रशासन ने 70 लाख शहरियों की जिंदगी सुधारने का बीड़ा उठाया है. इसके तहत आक्रामक रूप से कर उगाही करके सड़कों और सार्वजनिक भवनों की हालत सुधारने और सफाई करने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं.
शहर की गलियों से नशेड़ियों को हटाया जा रहा है और भिखारियों में से पेशेवरों की छंटनी की जा रही है. ताउम्र काबुल में रहने वालीं 43 साल की जिया वली कहती हैं, "जनतांत्रिक सरकार के हटने के बाद और इस्लामिक खिलाफत के कब्जे के बाद से हमने बहुत से बदलाव देखे हैं. सबसे बड़ा बदलाव तो ये है कि हम सुरक्षित महसूस कर रहे हैं.”
भीड़भाड़ भरे, प्रदूषित और बंदूके लहराते लोगों से भरा यह सदियों पुराना शहर पहाड़ियों के बीच दबा हुआ सा महसूस होता है, जिसे काबुल नदी बीचोबीच चीरती है. पश्चिमी देशों के समर्थन से चली पिछली सरकार के 20 साल लंबे प्रशासन के दौरान काबुल एक किले में तब्दील हो गया था क्योंकि विदेशियों पर तालिबान के हमलों का लगातार खतरा बना रहता था.
खुल गया है काबुल
शहर के बहुत से हिस्सों में आज भी पुराने बंकर नजर आते हैं. वहां कंटीली तारों की बाड़ और बैरियर लगे हैं, जिनके दूसरी तरफ हथियारबंद सैनिक खड़े हैं. लेकिन पिछले दो साल में काबुल की कई गलियों को इस हर वक्त के युद्ध से मुक्ति मिली है.
राष्ट्रपति के पूर्व सलाहकार रह चुके एक आर्किटेक्ट अमीन करीम कहते हैं, "जो पहले खतरा थे अब वही पहरेदार बने हैं और इसे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताते हैं.”
म्युनिसिपैलिटी के सांस्कृतिक मामलों के सलाहकार नेमातुल्लाह बरकाजी बताते हैं कि जिन सौ से ज्यादा सड़कों को आम जनता के लिए बंद रखा गया था, उन्हें अब खोल दिया गया है. साथ ही शहर-ए-ना नाम से एक केंद्रीय पार्क बनाया गया है जिसमें कई ग्रीन हाउस हैं और लाखों फूल खिले हुए हैं.
बरकाजी बताते हैं कि सौ किलोमीटर से ज्यादा लंबी नयी सड़कें बनाई गई हैं और पूर्व राष्ट्रपति की बेटी के घर को ढहाकर नया रास्ता बनाया गया है ताकि आने-जाने के लिए और सड़कें बन सकें.
फिर भी, खतरा तो है
हालांकि सुरक्षा का खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है और पहले जो चेकपॉइंट तालिबान के हमलों से बचने के लिए प्रयोग किए जाते थे, अब वे इस्लामिक स्टेट के हमलों से सुरक्षा के काम में लिए जा रहे हैं. गृह मंत्रालय के मुताबिक शहर में 62 हजार कैमरे काम कर रहे हैं. हालांकि इन तमाम कोशिशों के बावजूद ट्रैफिक जाम और प्रदूषण शहर प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है.
फल बेचने वाले 21 साल के खलीलुल्लाह कहते हैं कि इससे छोटे-मोटे अपराधों में कमी आई है और अब वह देर रात भी काम पर आने जाने में डरते नहीं हैं.
तालिबान ने निजी निवेश भी जुटाया है जो 24 चौराहों के पुनरोत्थान के लिए काम में लिया जाना है. लेकिन इन चौराहों पर अब भी व्यवस्था नहीं है और लोग हर तरफ से एक ही साथ आते-जाते हैं. बरकाजी पूरे भरोसे के साथ कहते हैं कि प्रशासन ने दस वर्षीय योजना बनाई है और हर समस्या हल हो जाएगी.
रौनक नहीं रही
पर कई लोग कहते हैं कि अब शहर की आबो-हवा में एक तरह की उदासी छायी रहती है. हालांकि रमीशा कहती हैं कि शहर की उदासी की बड़ी वजह तो पैसे की तंगी हैं. वह कहती हैं, "आप लोगों के चेहरों पर जो उदासी देख रहे हैं, वह आर्थिक परेशानी की वजह से है.”
करीम कहते हैं, "पहले गुरुवार शाम और शुक्रवार देर रात तक जगह-जगह लोगों के जमावड़े हुआ करते थे. रेस्तरां लोगों से भरे रहते थे. संगीत सुनाई देता था. युवा घूमते-फिरते नजर आते थे और लोग संगीत समारोहों में जा रहे होते थे.”
अब वैसा कुछ भी नहीं है. शाम घिरते ही काबुल की बहुत सी सड़कें अंधेरी और सुनसान हो जाती हैं, मानो कर्फ्यू लगा हो. दिन के वक्त भी शहर में बहुत कम महिलाएं नजर आती हैं.
बदलाव का सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर ही हुआ है. तालिबान ने महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लागू कर दी हैं. उनके काम करने और पढ़ने-लिखने परे कई पाबंदियां हैं.
जो रंग-बिरंगी दुकानें और ब्यूटी पार्लर काबुल के बाजारों की जान हुआ करते थे, वे बंद किए जा चुके हैं. पार्क, खेलों के मैदान और जिम आदि में महिलाओं का जाना मना है.
29 साल की हुमाएरा कहती हैं कि जो महिलाएं पहले खुलकर जीती थीं, अब वे बहुत रूढ़िवादी कपड़े पहनती हैं और सिर से पांव तक ढक कर रहती हैं. हालांकि हुमाएरा भी पहले से ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं क्योंकि सड़कों पर कोई परेशान नहीं करता.
वीके/सीके (एएफपी)