नयी दिल्ली, 10 अगस्त न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित देश के दूसरे ऐसे प्रधान न्यायाधीश होंगे जो बार से सीधे उच्चतम न्यायालय की पीठ में पदोन्नत हुए थे।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा नियुक्ति वारंट पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद न्यायमूर्ति ललित को बुधवार को भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में नियुक्त किया गया।
उनसे पहले न्यायमूर्ति एस. एम. सीकरी मार्च 1964 में शीर्ष अदालत की पीठ में सीधे पदोन्नत होने वाले पहले वकील थे। वह जनवरी 1971 में 13वें सीजेआई बने थे।
न्यायमूर्ति ललित मौजूदा प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. वी. रमण के सेवानिवृत्त होने के एक दिन बाद 27 अगस्त को कार्यभार संभालेंगे।
न्यायमूर्ति ललित का सीजेआई के रूप में तीन महीने से भी कम का संक्षिप्त कार्यकाल होगा और वह इस साल आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है।
न्यायमूर्ति ललित को 13 अगस्त 2014 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। तब वह वरिष्ठ अधिवक्ता थे।
वह मुसलमानों में ‘तीन तलाक’ की प्रथा को अवैध ठहराने समेत कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं।
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अगस्त 2017 में 3 : 2 के बहुमत से ‘तीन तलाक’ को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। उन तीन न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति ललित भी थे।
जनवरी 2019 में, उन्होंने अयोध्या में राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
मामले में एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने संविधान पीठ को बताया था कि न्यायमूर्ति ललित उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के वकील के रूप में एक संबंधित मामले में वर्ष 1997 में पेश हुए थे।
हाल ही में, न्यायमूर्ति ललित की अध्यक्षता वाली एक पीठ मामलों की सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत के सामान्य समय से एक घंटे पहले सुबह 9.30 बजे बैठी थी।
न्यायमूर्ति ललित ने कहा था, "मेरे विचार से आदर्श रूप से हमें सुबह नौ बजे बैठना चाहिए। मैंने हमेशा कहा है कि अगर हमारे बच्चे सुबह सात बजे स्कूल जा सकते हैं, तो हम नौ बजे क्यों नहीं आ सकते।"
उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत एक मामले में बंबई उच्च न्यायालय के ‘‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’’ संबंधी विवादित फैसले को खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन मंशा है, बच्चों की त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं।
नौ नवंबर, 1957 को जन्मे न्यायमूर्ति ललित ने जून 1983 में वकील बने और दिसंबर 1985 तक बंबई उच्च न्यायालय में वकालत की थी। वह जनवरी 1986 में दिल्ली आकर वकालत करने लगे और अप्रैल 2004 में, उन्हें शीर्ष अदालत द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया।
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सुनवाई के लिए उन्हें केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था।
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