(कुणाल दत्त)
टीटवाल (जम्मू कश्मीर), एक नवंबर भारत के सीमावर्ती गांव टीटवाल और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को अलग करने वाली नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर स्थित एक केबल पुल के बीचोंबीच एक स्पष्ट सफेद रंग की रेखा खींची गई है। यह पुल युद्धों और भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती वाले क्षेत्र में इतिहास के उतार-चढ़ाव भरे दौर का गवाह रहा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले साल फरवरी में संघर्ष विराम पर सहमति बनने के बाद से यहां शांति और स्थिरता लौटी है। इस गांव के रहने वाले कई लोग अब यह अपील कर रहे हैं कि आवाजाही और दोनों ओर के लोगों के दिलों को जोड़ने के लिए किशनगंगा नदी पर स्थित ‘क्रॉसिंग प्वाइंट’ को फिर से खोल दिया जाए।
इस पुल का निर्माण तत्कालीन जम्मू कश्मीर रियासत में 1931 में किया गया था और यह 1947 में हुए भारत-पाक विभाजन तथा इसके कारण हुए विस्थापन की त्रासदी का गवाह रहा है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धों का गवाह रहा है और इसने पिछले 75 वर्षों से दोनों देशों के बीच तेजी से बदलते संबंधों को देखा है।
किशनगंगा नदी पर लकड़ी का बना 160 फुट लंबा यह केबल पुल एलओसी के दोनों ओर आने जाने वाला चौथा बिंदु (क्रॉसिंग प्वाइंट) है। किशनगंगा को पाकिस्तान में नीलम नदी के नाम से जाना जाता है।
पुल को आधिकारिक रूप से चिलेहना टीटवाल क्रॉसिंग प्वाइंट (सीटीसीपी) के नाम से जाना जाता है और इसके दोनों ओर कड़ी पहरेदारी है।
भारतीय थल सेना ने कहा कि पिछले साल संघर्ष विराम पर सहमति बनने के बाद से दोनों ओर के लोगों की एक-दूसरे को जानने की जिज्ञासा बढ़ गई है।
टीटवाल गांव के नंबरदार जमीर अहमद (55) ने पीटीआई- से कहा, ‘‘नदी के उस ओर पीओके स्थित गांव एक पर्यटन स्थल बन गया है और वहां लोग मुजफ्फराबाद, लाहौर तथा रावलपिंडी से एलओसी और भारत में जन-जीवन देखने आते हैं।’’
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