नयी दिल्ली, 11 दिसंबर मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एमएम) ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश द्वारा विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यक्रम में की गई टिप्पणी की बुधवार को निंदा की तथा संसद एवं भारत के प्रधान न्यायाधीश से न्यायपालिका की विश्वसनीयता की रक्षा के लिए आवश्यक कार्रवाई करने का आह्वान किया।
विहिप द्वारा आठ दिसंबर को आयोजित एक समारोह में न्यायमूर्ति शेखर यादव ने कहा था कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मुख्य उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना है।
बहुमत के अनुसार काम करने वाले कानून सहित विभिन्न मुद्दों पर न्यायमूर्ति यादव के वीडियो एक दिन बाद व्यापक रूप से प्रसारित हो गये। इस पर कई वर्गों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, जिनमें विपक्षी नेता भी शामिल थे, जिन्होंने न्यायमूर्ति यादव की कथित टिप्पणी को “नफरती भाषण” करार दिया।
जमीयत (एमएम) अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने न्यायाधीश के बयान की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने अपने पद की विश्वसनीयता को गंभीर नुकसान पहुंचाया है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका की भूमिका न्याय को बनाए रखना और समाज के सभी वर्गों को एकजुट करना है, न कि विभाजनकारी बयानबाजी को बढ़ावा देना।
राज्यसभा के पूर्व सदस्य ने एक बयान में कहा, “न्यायमूर्ति यादव का बयान संवैधानिक मूल्यों और न्यायिक निष्पक्षता के सिद्धांतों के विपरीत है।”
टिप्पणियों को “भड़काऊ” और “विभाजनकारी” बताते हुए मदनी ने आशंका व्यक्त की कि इस तरह की बयानबाजी सांप्रदायिक सद्भाव को कमजोर कर सकती है और न्यायपालिका की निष्पक्षता में जनता का विश्वास कम कर सकती है।
न्यायमूर्ति यादव के आचरण की तत्काल जांच की मांग करते हुए मदनी ने संसद और भारत के प्रधान न्यायाधीश से इस मुद्दे को गंभीरता से लेने और न्यायपालिका की विश्वसनीयता की रक्षा के लिए जरूरी कार्रवाई करने की गुजारिश की।
उन्होंने कहा, “न्यायपालिका की पवित्रता की रक्षा की जानी चाहिए तथा इसकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी कदम से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।”
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