हैदराबाद, 12 अगस्त अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के कार्यकारी निदेशक कृष्णमूर्ति वी सुब्रमण्यन ने सोमवार को कहा कि अगर केंद्र और राज्य सरकारों ने भारत की आर्थिक वृद्धि को आठ प्रतिशत तक ले जाने के लिए जरूरी नीतियां लागू कीं तो देश वर्ष 2047 तक 55 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है।
सुब्रमण्यन ने यहां ‘इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस’ (आईएसबी) में अपनी पुस्तक ‘इंडिया ऐट 100’ के अनावरण पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि 55 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य दुस्साहसी लग सकता है लेकिन इसे हासिल किया जा सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत का निजी ऋण एवं सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात वर्ष 2020 में 58 प्रतिशत था, जो उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से करीब छह दशक पीछे है और ये देश अब 200 प्रतिशत पर हैं।
हालांकि, उन्होंने कहा कि ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ जैसी योजनाओं के जरिये वित्तीय समावेशन के मामले में अभूतपूर्व काम किया जा रहा है।
आईएमएफ के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘यह लक्ष्य निश्चित रूप से दुस्साहसिक प्रतीत होता है लेकिन चक्रवृद्धि की शक्ति इसे संभव बनाती है। आठ प्रतिशत की दर से वृद्धि दर्ज करने में सक्षम होने पर हम वास्तव में 55 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकते हैं।’’
भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके सुब्रमण्यन ने इस विश्वास का कारण पूछे जाने पर कहा, ‘‘मेरी धारणा ‘72 के नियम’ पर आधारित है। इसके मुताबिकख् डॉलर के संदर्भ में 12 प्रतिशत की वृद्धि दर (आठ प्रतिशत जीडीपी वृद्धि और पांच प्रतिशत मुद्रास्फीति को जोड़ने के बाद डॉलर के मुकाबले रुपये में एक प्रतिशत का ह्रास) होने पर जीडीपी हर छह साल में दोगुनी हो जाती है।’’
उन्होंने कहा कि वर्ष 2023 से अगले 24 साल की अवधि में 3.25 लाख करोड़ डॉलर वाली अर्थव्यवस्था ‘चार बार दोगुनी’ होगी, जिसकी वजह से यह वर्ष 2047 तक 52 लाख करोड़ डॉलर पर पहुंच जाएगी।
उन्होंने जापान का उदाहरण देते हुए कहा कि इसकी अर्थव्यवस्था 1970 में 215 अरब डॉलर पर थी लेकिन 1995 में यह 5.1 लाख करोड़ डॉलर हो गई।
उन्होंने कहा कि भारत को भौतिक बुनियादी ढांचे के अलावा मानव पूंजी, स्वास्थ्य सेवा को बढ़ाने और डिजिटल पूंजी बनाने में भी निवेश करने की जरूरत है।
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