सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को इस बात की जांच करने के लिए सहमत हो गया कि क्या दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा आरोपी पर उसके मोबाइल फोन की “लोकेशन” जांचकर्ताओं के साथ साझा करने के लिये लगाई गई जमानत की शर्त उसके निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है.
एक ऐतिहासिक फैसले में नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 24 अगस्त, 2017 को सर्वसम्मति से घोषणा की थी कि निजता का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है. न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने शर्त पर संज्ञान लिया और कहा कि प्रथम दृष्टया यह जमानत पर छूटे आरोपी की निजता के अधिकार का उल्लंघन है. HC on Swiggy, Zomato Food: स्विगी, जोमैटो से ऑर्डर करने के बजाय बच्चों को मां के हाथ के बना खाना दें
पीठ ने पूछा, “आपको हमें ऐसी शर्त का व्यावहारिक प्रभाव समझाना होगा. एक बार जब किसी व्यक्ति को आजाद किया जाता है, तो कुछ शर्तें लगाई जाती हैं. लेकिन यहां आप जमानत मिलने के बाद की गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं, क्या यह निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है?”
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस साल आठ फरवरी को ऑडिटर रमन भूरारिया को जमानत दे दी थी. उन्हें शक्ति भोग फूड्स लिमिटेड के खिलाफ कथित 3,269 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता मामले से उत्पन्न धन शोधन जांच के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था.
उच्च न्यायालय ने जमानत की कई शर्तें लगाई थीं और उनमें से एक इस प्रकार थी: “आवेदक को अपने मोबाइल फोन से संबंधित जांच अधिकारी को एक गूगल पिन लोकेशन साझा करनी होगी जिसे उसकी जमानत के दौरान चालू रखा जाएगा.” याचिका पर सुनवाई की तारीख 12 दिसंबर तय करते हुए शीर्ष अदालत ने शर्त की वैधता की जांच करने पर सहमति जताई और कहा कि प्रथम दृष्टया यह निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है.
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के वकील ने सामान्य जमानत शर्तों का हवाला दिया जहां आरोपियों को हर हफ्ते जांच अधिकारियों को जानकारी देनी होती है.
ईडी के वकील ने कहा, “यह केवल उसी चीज को सुविधाजनक बनाने वाली तकनीक है.”
पीठ ने कहा, “लेकिन यह आरोपी की गतिविधियों पर नजर रखने से अलग है.”
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