देश की खबरें | 'अवैध' गिरफ्तारियों को लेकर अदालती आदेशों से जांच एजेंसियां को उठानी पड़ रही ​​शर्मिंदगी

मुंबई, 12 जनवरी हाल ही में अदालतों ने "अवैध गिरफ्तारी" का हवाला देते हुए आरोपियों को रिहा करने के निर्देश दिए हैं, जिससे जांच एजेंसियों को झटका लगा है और उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ी है।

एक ओर अभियोजन पक्ष के वकीलों ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाने का अनुरोध किया है तो दूसरी तरफ बचाव पक्ष के वकील मानदंडों का पालन करने पर जोर दे रहे हैं।

बचाव पक्ष एक के वकील ने दावा किया कि इनमें से अधिकांश मामलों में गिरफ्तारियां "बिना सोचे-समझे" की गईं, जबकि अभियोजन पक्ष के वकीलों ने पीड़ितों के अधिकारों पर ध्यान देने की बात कही है।

दिसंबर 2024 में, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने रिश्वतखोरी के एक मामले में भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के दो अधिकारियों समेत छह लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन यहां की एक विशेष अदालत ने गिरफ्तारी को "अवैध" पाते हुए सीबीआई को आरोपियों की हिरासत देने से इनकार कर दिया और तत्काल रिहाई का आदेश दिया।

पिछले छह महीनों में, यहां की अदालतों में सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और स्थानीय पुलिस जैसी जांच एजेंसियों की कई हिरासत याचिकाओं का ऐसा ही हाल हुआ।

अधिकांश मामलों में बचाव पक्ष की दलील थी कि जांच एजेंसियां केस डायरी का उचित रखरखाव न करने, आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी का आधार न बताने या गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर उसे अदालत में पेश न करने जैसे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रावधानों का पालन नहीं कर रहीं।

कुछ आरोपियों की ओर से पेश हुए वकील राहुल अग्रवाल ने ‘पीटीआई-’ से बातचीत में दावा किया, "वे (जांच एजेंसियां) कानून में निर्धारित प्रावधानों और उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन नहीं कर रहीं।"

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