नयी दिल्ली, आठ अप्रैल इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा मीडिया विज्ञापनों पर दो साल के लिए रोक लगाने के कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सुझाव की बुधवार को निंदा करते हुए कहा कि ऐसा प्रस्ताव "वित्तीय सेंसरशिप" की तरह है।
आईएनएस ने कांग्रेस प्रमुख से कहा कि ‘‘जीवंत और स्वतंत्र प्रेस’’ के हित में वह अपना सुझाव वापस लें।
सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र में कोरोना संकट के मद्देनजर कई सुझाव दिए, जिसमें सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा "मीडिया विज्ञापनों- टेलीविज़न, प्रिंट और ऑनलाइन पर दो साल की अवधि के लिए पूर्ण रोक लगाना शामिल है।’’
आईएनएस ने एक बयान में कहा कि उसके अध्यक्ष शैलेश गुप्ता ने आईएनएस सदस्यों की ओर से कांग्रेस प्रमुख के सुझाव से असहमति जतायी और उसकी निंदा की।
बयान में कहा गया, ‘‘इस तरह का प्रस्ताव वित्तीय सेंसरशिप के समान है। जहां तक सरकारी खर्च का सवाल है तो यह बहुत छोटी राशि है, लेकिन यह अखबार उद्योग के लिए एक बड़ी राशि है जो बचे रहने के लिए संघर्ष कर रहा है। अखबार उद्योग किसी भी जीवंत लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।’’
इसमें कहा गया, ‘‘प्रिंट एकमात्र उद्योग है, जिसमें एक वेतन बोर्ड है और सरकार तय करती है कि कर्मचारियों को कितना भुगतान किया जाना चाहिए। यह एकमात्र उद्योग है जहां बाजार की ताकतें वेतन का फैसला नहीं करती हैं, सरकार की इस उद्योग के प्रति एक जिम्मेदारी है।’’
वहीं एक दिन पहले मंगलवार को न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) ने सरकार और सरकारी उपक्रमों द्वारा मीडिया विज्ञापनों पर दो साल के लिए रोक लगाये जाने संबंधी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सुझाव की ‘‘कड़ी निंदा’’ की थी।
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