दुबई, 30 नवंबर जलवायु संकट में कम योगदान देने के बावजूद इसका खामियाजा भुगतने वाले विकासशील और गरीब देशों को मुआवजा देने के उद्देश्य से हानि और क्षति कोष के संचालन को लेकर हुए समझौते का भारत ने बृहस्पतिवार को “सकारात्मक संकेत” के तौर पर स्वागत किया।
इस कोष को लेकर हुए समझौते पर मिलीजुली प्रतिक्रिया आई, खास कर ‘ग्लोबल साउथ’ से।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता सीओपी28 एक सकारात्मक संकेत के साथ शुरू हुई, जिसमें विभिन्न देशों ने हानि और क्षति कोष के संचालन पर शुरुआती समझौता किया। सीओपी के अध्यक्ष डॉ. सुल्तान अल जाबेर ने कहा कि विज्ञान स्पष्ट है और “अब हम सभी के लिये समय आ गया है कि जलवायु कार्रवाई के लिए पर्याप्त रूप से वृहद मार्ग तलाशा जाए।”
निर्णय की घोषणा के तुरंत बाद पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया: “संयुक्त अरब अमीरात में पहले दिन ही सीओपी28 के रफ्तार पकड़ने का सकारात्मक संकेत... हानि और क्षति कोष के संचालन पर ऐतिहासिक निर्णय सीओपी28 के उद्घाटन सत्र में अपनाया गया। भारत हानि एवं क्षति कोष को शुरू करने के फैसले का पुरजोर समर्थन करता है।”
ग्लोबल साउथ लंबे समय से बाढ़, सूखे और गर्मी सहित आपदाओं से निपटने के लिये पर्याप्त धन की कमी की ओर इशारा कर रहे हैं और अमीर देशों को इससे उबरने के लिये पर्याप्त धन नहीं देने का दोषी ठहरा रहे हैं।
ग्लोबल साउथ से तात्पर्य उन देशों से है जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है।
विकासशील देशों ने यह भी दावा किया है कि बदलावों से निपटने में मदद करने की जिम्मेदारी अमीर देशों की है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से ये वही देश हैं जिन्होंने पृथ्वी को गर्म करने वाले कार्बन उत्सर्जन में अधिक योगदान दिया है।
इससे पहले, बृहस्पतिवार को संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने कहा कि 2023 सबसे गर्म वर्ष होना निश्चित है और चिंताजनक प्रवृत्तियां भविष्य में बाढ़, जंगल की आग, हिमनद पिघलने और भीषण गर्मी में वृद्धि का संकेत देती हैं।
डब्ल्यूएमओ ने यह भी चेतावनी दी है कि वर्ष 2023 का औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल से लगभग 1.4 डिग्री सेल्सियस ऊपर है।
पिछले साल मिस्र के शर्म अल-शेख में आयोजित सीओपी27 में अमीर देशों ने हानि और क्षति कोष स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की थी। हालांकि, धन आवंटन, लाभार्थियों और प्रशासन पर फैसले लटकाए रखे गए थे।
विकासशील देश कोष रखने के लिए एक नयी और स्वतंत्र इकाई चाहते थे, लेकिन अगले चार वर्षों के लिए अस्थायी रूप से ही सही और अनिच्छा से विश्व बैंक को स्वीकार किया था।
इस कोष को चालू करने के निर्णय के तुरंत बाद, संयुक्त अरब अमीरात और जर्मनी ने घोषणा की कि वे इस कोष में 10-10 करोड़ अमेरिकी डॉलर का योगदान देंगे।
एनआरडीसी (प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद) में अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त के वरिष्ठ पैरवोकार जो वेट्स ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया।
डब्ल्यूआरआई इंडिया में जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम निदेशक उल्का केलकर ने कहा कि विकसित देशों को हानि एवं क्षति कोष में नयी और अतिरिक्त धनराशि देने की आवश्यकता है ताकि उन देशों और समुदायों को सहायता प्रदान की जा सके, जहां इसकी तत्काल आवश्यकता है।
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में वैश्विक राजनीतिक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह ने कहा, ‘‘अपनी स्थापना के एक वर्ष के भीतर हानि और क्षति कोष को चालू करने के ऐतिहासिक निर्णय के बीच, अंतर्निहित चिंताओं को संबोधित करना महत्वपूर्ण हो जाता है।’’
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