नयी दिल्ली, आठ अगस्त दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग लड़की के साथ परस्पर सहमति से यौन संबंध बनाने के सिलसिले में दर्ज किये गये एक पॉक्सो मामले में 23 वर्षीय एक युवक को जमानत दे दी और कहा है कि ‘एक नौजवान’ को दुर्दांत अपराधियों के बीच रखने से उसका भला होने के बजाय नुकसान अधिक होगा।
न्यायमूर्ति विकास महाजन ने कहा कि घटना के समय साढ़े 17 साल की रही नाबालिग लड़की में पर्याप्त रूप से परिपक्वता एवं बौद्धिक क्षमता थी और प्रथम दृष्टया यह आरोपी के साथ परस्पर सहमति से बना रोमांटिक संबंध है। न्यायमूर्ति महाजन ने कहा कि उनके बीच शारीरिक संबंध उनकी मर्जी से बने।
न्यायमूर्ति महाजन ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने पहले के एक फैसले में कहा था कि बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम का मकसद 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाना है , इसका उद्देश्य किशोरवय के बीच परस्पर सहमति से बने रोमांटिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखना कभी नहीं रहा।
अदालत ने हाल के अपने आदेश में कहा, ‘‘ फिलहाल करीब 23 साल की उम्र वाला याचिकाकर्ता 15 अक्टूबर, 2021 से हिरासत में ही है। याचिकाकर्ता को जेल में रखने से किसी सार्थक उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी बल्कि नवयुवक को दुर्दांत अपराधियों के बीच रखने से उसका भला होने के बजाय नुकसान अधिक होगा। ’’
मौजूदा मामले में लड़की के कहने पर प्राथमिकी दर्ज की गयी। लड़की ने आरोप लगाया कि आरोपी उसका पड़ोसी है और उसने उससे दोस्ती की तथा शादी करने का आश्वासन देकर उसने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाये।
बाद में पता चला कि लड़की गर्भवती हो गयी तथा चिकित्सकीय परीक्षण से सामने आया कि गर्भपात के लिए काफी देर हो चुकी है।
अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने कहा कि पीड़िता ने अपने बयान में कहा है कि वह याचिकाकर्ता के विरूद्ध कभी मामला दर्ज करवाना नहीं चाहती थी लेकिन ऐसा लगता है कि ‘अपने परिवार के कहने पर ’उसने प्राथमिकी दर्ज करवायी क्योंकि उसका परिवार उसके गर्भवती होने का पता चलने पर परेशान हो गया था लेकिन तब तक गर्भपात का समय निकल चुका था।
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