नयी दिल्ली, 22 दिसंबर केंद्र ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को बताया है कि पश्चिम बंगाल और बिहार में भूजल आर्सेनिक से सबसे अधिक प्रभावित मिले हैं।
अधिकरण इस मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है कि चावल के आर्सेनिक से संदूषित होने का संदेह है क्योंकि यह पानी और मिट्टी से विषैले अर्ध-धात्विक तत्व को अधिक अवशोषित करता है। इससे पहले हरित अधिकरण ने इस पर केंद्र से जवाब मांगा था।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ ने 16 दिसंबर के आदेश में कहा कि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) से जानकारी मांगने के बाद अपना जवाब दाखिल किया था।
केंद्र ने अपने जवाब में कहा, ‘‘पश्चिम बंगाल और बिहार में भूजल में आर्सेनिक संदूषण सर्वाधिक है। दूषित भूजल द्वारा सिंचाई, कृषि मिट्टी में आर्सेनिक के प्रवेश का प्रमुख मार्ग है जो अंततः खाद्य श्रृंखला में इसके प्रवेश का कारण बनता है।’’
जवाब में कहा गया है कि चावल में विषैले तत्व की मात्रा काफी अधिक हो सकती है क्योंकि इसकी पैदावार पानी में होती है।
इस पर अधिकरण ने कहा कि केन्द्र के जवाब के अनुसार पौधों में आर्सेनिक सामग्री जड़ों, तनों और और फिर पत्तियों में पहुंचती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘ पत्ते वाली सब्जियों (पालक, मेथी आदि) और भूमिगत सब्जियों (चुकंदर, मूली आदि) के खाने योग्य भागों में बैंगन, सेम, भिंडी, टमाटर आदि के खाने योग्य भागों की तुलना में बहुत अधिक आर्सेनिक पाया गया....।’’
केन्द्र की ओर से दिए गए उत्तर में मृदा-पौधे प्रणाली में आर्सेनिक के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न उपचारात्मक उपाय भी सुझाए गए।
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