वैज्ञानिकों का कहना है कि आज ग्रीनलैंड जैसा दिखता है, पहले उससे काफी अलग था. एक नई खोज ने ग्रीनलैंड के बर्फ की चादर के दोबारा पूरी तरह पिघलने की आशंका मजबूत कर दी है. ऐसा हुआ तो दुनिया के तटवर्ती शहर खत्म हो सकते हैं.ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब ग्रीनलैंड अपने नाम के जैसा ही था. वैज्ञानिकों को द्वीप के मध्य में करीब 3 किलोमीटर की गहराई से निकले बर्फ में कई वनस्पतियों और कीटों के अवशेष मिले हैं. इनसे पता चल रहा है कि यह इलाका लाखों वर्ष पहले हरा भरा था. उस वक्त वातावरण में कार्बन का स्तर आज के मुकाबले काफी कम था.
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में इन वैज्ञानिकों की रिसर्च रिपोर्ट सोमवार को प्रकाशित हुई. इस रिपोर्ट से अंदाजा लग रहा है कि इंसानी गतिविधियों से बदले जलवायु के कारण सागर का जलस्तर पहले जितना सोचा गया था, उससे कहीं ज्यादा बढ़ने की आशंका है. पर्यावरण को भारी नुकसान होने की आशंकाएं मजबूत हो रही हैं.
तीन गुना तेजी से पिघल रही है, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ
आइस कोर में मिले जीव, वनस्पति
जिस आइस कोर यानी बर्फ और चट्टान के टुकड़े की बात हो रही है उसे जीआईएसपी2 नाम दिया गया है. यह 1993 में खुदाई के दौरान निकला था. इसके चट्टान और बर्फ पर पहले बहुत अध्ययन हुआ है. हालांकि इसमें किसी जीवाश्म के मिलने का अनुमान नहीं था. इसकी वजह यह थी कि ग्रीनलैंड हालिया अतीत में कभी बर्फ से मुक्त रहा होगा यह विचार ही लोगों को हाल तक बहुत दूर की कौड़ी लगता था.
रिसर्च रिपोर्ट के मुख्य लेखक बॉल बीयरमान वेरमोंट यूनिवर्सिटी में एनवायरनमेंट लाइंस के प्रोफेसर हैं. उन्होंने बताया, "वास्तव में, हमने काम शुरू करने के शायद पहले घंटे के अंदर ही जीवाश्मों को देख लिया”. वैज्ञानिकों ने जब तीन इंच की मिट्टी की परत में विलो लकड़ी, स्पाइकमॉस के बीजाणु, कवक, एक कीड़े की आंख और पॉपी का बीज देखा तो उनकी हैरानी का ठिकाना नहीं था. इन सबसे वहां एक फलते फूलते टुंड्रा इकोसिस्टम का पता चलता है.
अगर द्वीप के मध्य से बर्फ पिघली तो इसका मतलब निश्चित रूप से यही है कि यह बाकी ग्रीनलैंड से भी गायब थी. बीयरमान कहते हैं, "इससे आज के जीवाश्म ईंधन से भरे जलवायु के संकट का अंदाजा हो जाता है."
ग्लोबल वार्मिंग ना हो तो भी ग्रीनलैंड की बर्फ पिघल कर तबाही लाएगी
इंसानों के लिए संकट का अंदेशा
अगर जीवाश्म ईंधन के जलने से पैदा हो रही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भारी मात्रा में कम नहीं हुआ तो ग्रीन लैंड की बर्फ की चादर आने वाली सदियों में पूरी तरह पिघल जाएगी. इससे सागर का जल स्तर करीब सात मीटर तक बढ़ जाएगा. इसके नतीजे में दुनिया के तटवर्ती शहर खत्म हो जाएंगे. बीयरमान ने चेतावनी दी है, "दुनिया भर के करोड़ों लोग अपने रहने की जगह खो देंगे."
2016 में भी वैज्ञानिकों ने 1993 वाली आइस कोर का अध्ययन किया था. तब रेडियोएक्टिव डेटिंग के जरिए पता लगा था कि यह करीब 11 लाख साल पुरानी हो सकती है. उनकी मॉडलिंग ने यह भी दिखाया कि अगर यह बर्फ जीआईएसपी2 साइट पर पिघली थी तो इसका मतलब है कि ग्रीनलैंड का 90 फीसदी इलाका बर्फ से मुक्त रहा होगा. हालांकि यह खोज विवादित थी क्योंकि लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि ग्रीनलैंड में बर्फ की चादर कई लाख सालों से अभेद्य है.
इसके बाद 2019 में बीयरमान और एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दूसरे आइस कोर का अध्ययन किया. इस बार इसे अमेरिकी सेना के भूतपूर्व अड्डे कैंप सेंचुरी से 1960 के दशक में निकाला गया था. यह ग्रीन लैंड के तट के पास था. इसमें जब उन्हें तलछट, पत्तियां और काई मिली तो वे हैरान रह गए. ज्यादा उन्नत डेटिंग की तकनीक मौजूद होने से उन्हें पता चला कि इस हिस्से की बर्फ 4,16, 000 साल पहले गायब हुई थी.
तट के पास की आइस कोर में कार्बनिक पदार्थों की खोज ने बीयरमान को 1993 के कोर का दोबारा अध्ययन करने और उसी तरह की चीजों को ढूंढने के लिए प्रेरित किया. उन्हें जिस चीज की तलाश थी वो उन्हें जल्दी ही मिल गई. बीयरमान कहते हैं, "बर्फ नहीं रही होगी, क्योंकि बर्फ के रहते वहां ना तो पौधे होंगे, ना कीड़े ना ही मिट्टी में काई. अब हम निश्चित रूप से जानते हैं कि ना केवल कैंप सेंचुरी बल्कि जीआईसपी2 यानी बिल्कुल मध्य में मौजूद बर्फ की चादर पिघली थी. अब हम यह जानते हैं कि बर्फ की यह पूरी चादर भी पिघल सकती है."
एनआर/एसके (एएफपी)