नयी दिल्ली, 26 दिसंबर निर्यातकों के शीर्ष संगठन फियो ने बृहस्पतिवार को अमेरिका में 25 अरब डॉलर निर्यात क्षमता का लाभ उठाने को लेकर तीन साल के लिए 750 करोड़ रुपये के कोष की मांग की है। इसका मकसद अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चीन पर उच्च शुल्क दर लगाने की चेतावनी से उत्पन्न होने वाले संभावित अवसरों का फायदा उठाना है।
वित्त मंत्रालय के साथ बजट पूर्व बैठक में फियो (निर्यात संगठनों का महासंघ) के अध्यक्ष अश्विनी कुमार ने पांच प्रतिशत ब्याज समानीकरण योजना (आईईए) को आगे बढ़ाये जाने की भी मांग की।
कुमार ने कहा, ‘‘अमेरिका में 25 अरब डॉलर के अतिरिक्त निर्यात का फायदा उठाने के लिए एक योजना शुरू की जा सकती है। अमेरिका पर ध्यान देने को लेकर तीन साल के लिए सालाना 250 करोड़ रुपये (कुल 750 करोड़ रुपये) के साथ विपणन योजना शुरू की जा सकती है।’’
उन्होंने कहा कि चीन पर उच्च शुल्क दर भारतीय निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर पैदा कर सकती है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां चीन पहले एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है।
फियो के एक अध्ययन के अनुसार, भारत इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल उपकरण, कपड़ा और परिधान, खिलौने, रसायन, वाहन कलपुर्जा, जूते, फर्नीचर और घरेलू सजावट जैसे क्षेत्रों में चीन की जगह ले सकता है।
कुमार ने कहा कि अमेरिका में उत्पादों के निर्यात के लिए भारत की विपणन रणनीति को कई प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विशेष रूप से विपणन और रणनीतिक साझेदारी बनाने पर ध्यान देने की जरूरत है।
फियो अध्यक्ष ने कहा, ‘‘हमने भारत से सामानों की खरीद के अवसर को लेकर पहले ही प्रमुख व्यापार संगठनों से संपर्क करना शुरू कर दिया है। हमें इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में प्रदर्शनियों में भाग लेने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।’’
कुमार ने ब्याज दर के बारे में कहा कि आईईएस वर्तमान में केवल 31 दिसंबर, 2024 तक उपलब्ध है। वह भी सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम (एमएसएमई) के विनिर्माताओं के लिए 50 लाख रुपये प्रति आईईसी (आयात-निर्यात कोड) की वार्षिक सीमा के साथ उपलब्ध है। यह कई एमएसएमई के लिए अपर्याप्त है।
उन्होंने कहा कि चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, यूरो क्षेत्र, थाइलैंड या मलेशिया जैसे देशों की तुलना में भारत में अन्य प्रतिस्पर्धी देशों के मुकाबले ब्याज अधिक है। इससे भारतीय निर्यातकों के लिए वित्तपोषण इन देशों के निर्यातकों की तुलना में अधिक महंगा हो जाता है।
कुमार ने कहा, ‘‘अगर आईईएस का विस्तार किया जाता है, तो यह भारतीय निर्यातकों के लिए कर्ज की लागत को कम कर, वैश्विक बाजार में उनकी मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करके समान अवसर प्रदान करने में मदद करेगा।’’
निर्यातकों ने अनुसंधान एवं विकास पर कर लाभ और निजी क्षेत्र की ‘शिपिंग लाइन’ को प्रोत्साहित करने के लिए अधिक प्रोत्साहन देने की भी मांग की ताकि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार घरेलू ‘शिपिंग लाइन’ के माध्यम से हो और इस क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हो सके।
उन्होंने कहा, ‘‘हम सालाना परिवहन सेवा शुल्क के रूप में 100 अरब डॉलर से अधिक विदेशी इकाइयों को दे रहे हैं और माल ढुलाई (शिपिंग) भाड़ा इसका एक प्रमुख तत्व है।’’
इसके अलावा रत्न और आभूषण क्षेत्र के निर्यातकों ने उपभोक्ता जागरूकता को लेकर हीरा उद्योग के लिए बजटीय समर्थन का आग्रह किया। इसका कारण इस क्षेत्र के निर्यात में लगातार आ रही गिरावट है।
संगठन ने सरकार को आभूषण पार्कों को बुनियादी ढांचे का दर्जा देने का भी सुझाव दिया ताकि इसका विकास कर रही कंपनियों को बैंकों से आसानी से कर्ज मिल सके।
रत्न और आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) मुंबई में दुनिया का सबसे बड़ा आभूषण पार्क विकसित कर रही है।
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