
नयी दिल्ली, नौ मई राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को गंगा नदी में प्रदूषण का पूरा ब्योरा देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव के नेतृत्व वाली पीठ ने दो मई को दिए अपने आदेश में कहा कि राज्य को पहले जिलेवार ब्योरा देने का निर्देश दिया गया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अप्रयुक्त नालों से कोई भी अशोधित मलजल, गंगा नदी या उसकी सहायक नदियों में न जाए।
पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल थे।
पीठ ने, हालांकि, कहा कि राज्य के पर्यावरण सचिव द्वारा 30 अप्रैल को दी गई रिपोर्ट में अधूरे ब्योरे दिए गए हैं।
इसने कहा है कि रिपोर्ट में कई बिंदुओं पर जानकारी का अभाव है, जैसे कि गंगा में सीधे या इसकी मुख्य या उप-सहायक नदी में बहने वाले नालों या सीवेज के निर्वहन का ब्योरा।
पीठ ने कहा कि रिपोर्ट में यह भी नहीं बताया गया है कि यदि नाले को टैप किया गया है तो कितनी मात्रा में अपशिष्ट को किस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में भेजा जाएगा और यदि टैप नहीं किया गया है तो क्या प्रस्ताव में इसे किसी एसटीपी में भेजने का प्रावधान है।
इसमें यह भी कहा गया है कि प्रत्येक नाले को टैप करने की तिथि, महीना और वर्ष के अलावा कार्य के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के नाम भी नहीं बताए गए हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘इस खुलासे में सोनभद्र, मऊ, भदोही, जौनपुर, आजमगढ़, गोरखपुर, देवरिया, खुशीनगर, महाराजगंज और प्रयागराज जिलों से संबंधित अधूरी जानकारी दी गई है।"
राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने पूरा ब्योरा देने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा जिसे पीठ ने मंजूर कर लिया और सुनवाई 29 मई के लिए निर्धारित कर दी।
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