नयी दिल्ली, पांच दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने जबरन धर्मांतरण को एक बार फिर ‘गंभीर मुद्दा’ करार देते हुए सोमवार को कहा कि यह संविधान के विरूद्ध है।
न्यायालय वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रहा है । याचिकाकर्ता ने न्यायालय से केंद्र और राज्यों को ‘‘डरा-धमकाकर, धोखे से उपहार या मौद्रिक लाभ का लालच देकर’’ किये जाने वाले कपटपूर्ण धर्मांतरण को रोकने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
केंद्र ने अदालत से कहा कि वह ऐसे तरीकों से होने वाले धर्मांतरण पर राज्यों से सूचनाएं एकत्र कर रहा है।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ के सामने सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस मुद्दे पर विस्तृत सूचना दाखिल करने के लिए समय मांगा। मेहता ने कहा, ‘‘ हम राज्यों से सूचनाएं जुटा रहे हैं। हमें एक सप्ताह का वक्त दे दीजिए।’’
उन्होंने कहा कि वैधानिक रूप से शासन यह तय करेगा कि क्या कोई व्यक्ति अपनी धार्मिक मान्यता बदल जाने के कारण अपना धर्म बदल रहा है या किसी और कारण से।
शीर्ष अदालत ने माना कि जबरन धर्मांतरण बहुत ही गंभीर मामला है। जब एक वकील ने इस अर्जी की विचारणीयता पर सवाल उठाया तो पीठ ने कहा, ‘‘ इतना तकनीकी मत बनिए। हम यहां हल ढूढने के लिए बैठे हैं। यह यहां सोद्देश्य बैठे हैं। हम चीजों को सही करने बैठे हैं। यदि किसी चैरिटी (परमार्थ संगठन) का उद्देश्य नेक है तो वह स्वागतयोग्य है लेकिन जिस बात की यहां जरूरत है वह नीयत है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘ इसे विरोधात्मक के रूप में मत लीजिए। यह बहुत गंभीर मुद्दा है। आखिरकार यह हमारे संविधान के विरूद्ध है। जब कोई व्यक्ति भारत में रहता है तो उस हर व्यक्ति को भारत की संस्कृति के अनुसार से चलना होगा। ’’
शीर्ष अदालत इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को करेगी। शीर्ष अदालत ने हाल में कहा था कि जबरन धर्मांतरण राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है और नागरिकों की धार्मिक आजादी का हनन कर सकता है। उसने केंद्र से इस ‘‘गंभीर’’ मुद्दे से निपटने के लिए ईमानदार कोशिश करने को कहा था।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)