नयी दिल्ली, 25 जून दिल्ली उच्च न्यायालय ने कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देने के निचली अदालत के आदेश पर मंगलवार को रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि निचली अदालत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उसके समक्ष पेश की गई सामग्री का उचित आकलन करने में विफल रही और उसने आम आदमी पार्टी नेता की जमानत याचिका पर फैसला करते समय विवेक का इस्तेमाल नहीं किया।
पीठ ने कहा कि जमानत आदेश को लेकर ईडी की आपत्तियों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
इसने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश ने विवादित आदेश पारित करते समय रिकॉर्ड पर प्रस्तुत सामग्री/दस्तावेजों और ईडी द्वारा उठाए गए तर्कों का उचित आकलन नहीं किया। पीठ ने कहा कि धारा 439(2) के तहत याचिका में दी गई दलीलों/आधारों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘तदनुसार, वर्तमान आवेदन स्वीकार किया जाता है और विवादित आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जाती है।’’
निचली अदालत की न्यायाधीश, न्याय बिंदु ने 20 जून को केजरीवाल को जमानत दे दी थी और एक लाख रुपये के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया था।
ईडी ने अगले दिन उच्च न्यायालय का रुख किया और दलील दी कि निचली अदालत का आदेश ‘‘त्रुटिपूर्ण, एकतरफा और गलत’’ था तथा उसे मामले पर बहस करने का पर्याप्त अवसर दिए बिना पारित कर दिया गया।
जमानत आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की ईडी की अर्जी पर 34 पृष्ठों के आदेश में न्यायमूर्ति जैन ने कहा कि प्रत्येक अदालत का यह दायित्व है कि वह पक्षों को अपना-अपना मामला प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त अवसर दे और इस मामले में भी ईडी को केजरीवाल की जमानत याचिका पर दलीलें पेश करने का पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिए था।
न्यायमूर्ति जैन ने कहा कि निचली अदालत ने ईडी द्वारा लिखित दलीलों सहित दी गई अन्य दलीलों पर चर्चा और विचार नहीं किया और न ही जमानत देते समय धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 45 के तहत ‘‘दोहरी शर्त’’ की आवश्यकता के संबंध में भी चर्चा की।
पीएमएलए की धारा 45 के तहत किसी आरोपी को ‘दोहरी शर्त’ के मद्देनजर जमानत दी जा सकती है, यानी अदालत को प्रथम दृष्टया यह विश्वास हो कि वह ऐसे अपराध का दोषी नहीं है तथा अभियोजक को जमानत आवेदन का विरोध करने का अवसर दिया गया है।
अदालत ने कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख के रूप में केजरीवाल की जिम्मेदारी के मुद्दे को भी जमानत आदेश में कोई जगह नहीं मिली।
अदालत ने कहा कि इस स्तर पर, यह नहीं कहा जा सकता कि केजरीवाल की गिरफ्तारी और रिमांड कानून के अनुसार नहीं थी और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किए बिना उनकी निजी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया था।
इसने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री को उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई अंतरिम जमानत लोकसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में दी गई थी और इसलिए उनकी यह दलील कि उन्होंने इसका दुरुपयोग नहीं किया, ज्यादा मददगार नहीं है।
अवकाशकालीन न्यायाधीश के रूप में विशेष न्यायाधीश न्याय बिंदु ने 20 जून को धनशोधन मामले में केजरीवाल को जमानत दे दी थी और कहा था कि ईडी धनशोधन मामले में अपराध की आय से उन्हें जोड़ने वाले प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा है।
इक्कीस जून को, उच्च न्यायालय ने स्थगन के मुद्दे पर फैसला सुनाये जाने तक जमानत आदेश के क्रियान्वयन को स्थगित कर दिया था।
केजरीवाल ने अपनी जमानत पर अंतरिम रोक के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया है। सोमवार को शीर्ष अदालत ने उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए 26 जून की तारीख तय की और कहा कि वह इस मुद्दे पर उच्च न्यायालय के आदेश की घोषणा की प्रतीक्षा करना चाहेगी।
दिल्ली आबकारी नीति तैयार करने और इसके क्रियान्वयन से जुड़ी कथित अनियमितताओं एवं भ्रष्टाचार की उपराज्यपाल ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने का आदेश दिया था, जिसके बाद 2022 में आबकारी नीति को रद्द कर दिया गया था।
सीबीआई और ईडी के अनुसार, आबकारी नीति को संशोधित करते समय अनियमितताएं की गईं और लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
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