चुनावी बॉण्ड योजना ‘त्रुटिहीन’ नहीं, चंदे की जानकारी मतदाताओं के लिए जरूरी: न्यायालय
यह मानते हुए कि चुनावी बॉण्ड योजना ‘त्रुटिहीन’ नहीं है, उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि मतदाताओं को वोट देने की अपनी स्वतंत्रता का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने के लिए किसी राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त धन के बारे में जानकारी आवश्यक है।
नयी दिल्ली, 15 फरवरी: यह मानते हुए कि चुनावी बॉण्ड योजना ‘त्रुटिहीन’ नहीं है, उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि मतदाताओं को वोट देने की अपनी स्वतंत्रता का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने के लिए किसी राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त धन के बारे में जानकारी आवश्यक है. प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ केंद्र की इस दलील से सहमत नहीं थी कि चंदा प्राप्त करने वाला एक राजनीतिक दल चंदा देने वालों की पहचान नहीं जानता है, क्योंकि न तो बॉण्ड पर उनका नाम होगा और न ही बैंक इसके विवरण का खुलासा करेगा.
शीर्ष अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसले में 2018 की इस योजना को "असंवैधानिक" करार देते हुए रद्द कर दिया और बॉण्ड खरीदारों के नाम, बॉण्ड के मूल्य और प्राप्तकर्ताओं का खुलासा करने का आदेश दिया. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने खुद की ओर से तथा न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की ओर से फैसला लिखा। उन्होंने कहा, ‘‘यह (बॉण्ड) योजना ‘त्रुटिहीन’ नहीं है. इस योजना में पर्याप्त कमियां हैं, जो राजनीतिक दलों को उनके लिए किए गए योगदान का विवरण जानने में सक्षम बनाती हैं.
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने एक अलग फैसला लिखा और प्रधान न्यायाधीश द्वारा लिखे गए फैसले से सहमति के लिए अलग-अलग कारण दिए. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि चुनावी बॉण्ड के माध्यम से दिये गये चंदे के आंकड़ों के अनुसार, 94 प्रतिशत चंदे एक करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में दिये गये. पीठ ने कहा कि चुनावी बॉण्ड आर्थिक रूप से साधन संपन्न दानदाताओं को जनता के सामने चयनात्मक गुमनामी प्रदान करते हैं, न कि राजनीतिक दल के सामने.
इसमें कहा गया है, ''उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, हमारी राय है कि किसी मतदाता को वोट देने की अपनी स्वतंत्रता का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए किसी राजनीतिक दल को मिलने वाले वित्तपोषण के बारे में जानकारी आवश्यक है.'' इसमें कहा गया कि संविधान 'निर्वाचक' और 'निर्वाचित' पर ध्यान केंद्रित करके राजनीतिक समानता की गारंटी देता है. न्यायालय ने कहा, ‘‘हालांकि, संवैधानिक गारंटी के बावजूद राजनीतिक असमानता बनी हुई है. ‘आर्थिक असमानता के कारण राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करने की व्यक्तियों की क्षमता में अंतर’ असमानता में योगदान देने वाले कारकों में से एक है.’’
पीठ ने कहा कि राजनीतिक रूप से बराबरी वाले समाज में, नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए एक सी आवाज मिलनी चाहिए. न्यायालय ने कहा, ‘‘हम पिछले अनुभाग में पहले ही धन और राजनीति के घनिष्ठ संबंध को स्पष्ट कर चुके हैं, जहां हमने चुनावी परिणामों पर धन के प्रभाव की व्याख्या की है. हालांकि, चुनावी राजनीति पर धन का प्रभाव चुनावी परिणामों पर इसके प्रभाव तक सीमित नहीं है.’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह याद रखना चाहिए कि भारत में कानूनी व्यवस्था ‘अभियान फंडिंग’ और ‘चुनावी फंडिंग’ के बीच अंतर नहीं करती है. पीठ ने कहा, ‘‘यह आर्थिक असमानता और राजनीतिक असमानता तथा भारत में पार्टी वित्तपोषण को विनियमित करने वाली कानूनी व्यवस्था के बीच संबंध के आलोक में है कि एक जागृत मतदाता के लिए राजनीतिक वित्तपोषण पर जानकारी की अनिवार्यता का विश्लेषण किया जाना चाहिए." इसमें कहा गया है कि पैसे और राजनीति के बीच गहरे संबंध के कारण आर्थिक असमानता राजनीतिक जुड़ाव के विभिन्न स्तरों को जन्म देती है.
पीठ ने कहा, ‘‘प्राथमिक स्तर पर, राजनीतिक चंदा दानदाताओं को ‘साथ बैठने का अवसर’ देता है, यानी यह विधायकों/सांसदों तक पहुंच बढ़ाता है। यह पहुंच नीति-निर्माण पर प्रभाव में भी तब्दील हो जाती है.’’ शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘एक आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति के पास राजनीतिक दलों को वित्तीय योगदान देने की अधिक क्षमता होती है और इस बात की वैध संभावना है कि किसी राजनीतिक दल को चंदा देने से धन और राजनीति के बीच घनिष्ठ संबंध के कारण ‘एक हाथ ले, दूसरे हाथ दे’ वाली स्थिति आ जाएगी.’’
इसमें कहा गया है कि राजनीतिक चंदे के बारे में जानकारी मतदाता को यह आकलन करने में सक्षम बनाएगी कि नीति निर्माण और वित्तीय योगदान के बीच कोई संबंध है या नहीं. पीठ ने कहा कि चंदा देने वालों और राजनीतिक दलों के बीच पारस्परिक सहयोग की व्यवस्था के तर्क को स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है कि राजनीतिक दल को उसे मिलने वाले वित्तपोषण के विवरण की जानकारी हो.
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