कोलकाता, 5 मई : मतदान के अंतिम पांच चरण जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अलग-अलग चुनाव लड़ रहे सहयोगियों- कांग्रेस-वाम गठजोड़ तथा तृणमूल कांग्रेस के बीच दरार खुलकर सामने आ रही है. इससे संदेशखालि और एसएससी घोटाले जैसे स्थानीय मुद्दों के कारण पश्चिम बंगाल के शेष 36 निर्वाचन क्षेत्रों में से आधे पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है. राज्य में ‘इंडिया’ के हिस्से के बजाय स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने के तृणमूल कांग्रेस के फैसले से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है, जिसमें अन्य दावेदार भाजपा और कांग्रेस-वाम गठबंधन हैं.
तृणमूल और कांग्रेस दोनों ने दावा किया है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा हैं तथा बंगाल में विपक्षी मोर्चे के प्रामाणिक प्रतिनिधि हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि 2019 के पुलवामा हमले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे प्रमुख राष्ट्रीय विमर्श के बिना, भ्रष्टाचार के आरोप, विद्यालय सेवा आयोग (एसएससी) की नौकरियों को रद्द करना, संदेशखालि में घटनाएं और संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) के कार्यान्वयन जैसी स्थानीय चिंताएं चुनावी मुद्दों को बदल रही हैं. यह भी पढ़ें : कांग्रेस संगठन के असहयोग और अविश्वास के कारण नामांकन वापस लिया : अक्षय कांति बम
‘सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज’ के राजनीतिक विज्ञानी मैदुल इस्लाम ने टिप्पणी की, “कुछ महीने पहले तक ऐसा लग रहा था कि बंगाल में चुनाव तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच प्रमुख मुकाबला होगा. लेकिन भ्रष्टाचार और संदेशखालि जैसे मुद्दों को प्रमुखता मिलने के साथ, वाम-कांग्रेस गठबंधन कई सीट पर तेजी से बढ़त हासिल कर रहा है और कम से कम 18-20 लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव त्रिकोणीय मुकाबले में बदलता दिख रहा है.”
उन्होंने कहा कि मालदा और मुर्शिदाबाद जिलों में दो और तीन सीटों के अलावा, जहां तृणमूल और कांग्रेस ने 2019 में दो-दो तथा भाजपा ने एक सीट हासिल की, दक्षिण बंगाल में 13 सीट हैं जहां तृणमूल और वाम-कांग्रेस गठबंधन में कड़ा मुकाबला है.
इस्लाम ने कहा, “ऐसा नहीं है कि वाम-कांग्रेस कई सीट जीतेंगे, लेकिन जिन क्षेत्रों में उनको मिलने वाले मत 10 प्रतिशत से ऊपर है, वहां संभावना है कि अगर वे दो प्रतिशत मत और हासिल कर लेते हैं तो वे नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं. वे अगर ऐसा करने में कामयाब रहे तो इसका नुकसान तृणमूल या भाजपा को हो सकता है.” तृणमूल और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सूत्रों के मुताबिक, चुनावी लड़ाई के मैदान में मालदा और मुर्शिदाबाद से आगे तक फैला हुआ है, जिसमें दम दम, श्रीरामपुर, आरामबाग, हुगली, हावड़ा, बैरकपुर, बर्धमान-पूर्व, बर्धमान-दुर्गापुर, बांकुरा, पुरुलिया, तमलुक, कोलकाता उत्तर और जादवपुर जैसे लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं जहां त्रिकोणीय लड़ाई देखने को मिल सकती है. उल्लेखनीय है कि 2019 के संसदीय चुनाव में इनमें से आठ सीट तृणमूल ने और बाकी सीट भाजपा ने जीती थीं.
‘सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज’ के राजनीतिक विज्ञानी मैदुल इस्लाम ने टिप्पणी की, “कुछ महीने पहले तक ऐसा लग रहा था कि बंगाल में चुनाव तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच प्रमुख मुकाबला होगा. लेकिन भ्रष्टाचार और संदेशखालि जैसे मुद्दों को प्रमुखता मिलने के साथ, वाम-कांग्रेस गठबंधन कई सीट पर तेजी से बढ़त हासिल कर रहा है और कम से कम 18-20 लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव त्रिकोणीय मुकाबले में बदलता दिख रहा है.”
उन्होंने कहा कि मालदा और मुर्शिदाबाद जिलों में दो और तीन सीटों के अलावा, जहां तृणमूल और कांग्रेस ने 2019 में दो-दो तथा भाजपा ने एक सीट हासिल की, दक्षिण बंगाल में 13 सीट हैं जहां तृणमूल और वाम-कांग्रेस गठबंधन में कड़ा मुकाबला है.
इस्लाम ने कहा, “ऐसा नहीं है कि वाम-कांग्रेस कई सीट जीतेंगे, लेकिन जिन क्षेत्रों में उनको मिलने वाले मत 10 प्रतिशत से ऊपर है, वहां संभावना है कि अगर वे दो प्रतिशत मत और हासिल कर लेते हैं तो वे नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं. वे अगर ऐसा करने में कामयाब रहे तो इसका नुकसान तृणमूल या भाजपा को हो सकता है.” तृणमूल और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सूत्रों के मुताबिक, चुनावी लड़ाई के मैदान में मालदा और मुर्शिदाबाद से आगे तक फैला हुआ है, जिसमें दम दम, श्रीरामपुर, आरामबाग, हुगली, हावड़ा, बैरकपुर, बर्धमान-पूर्व, बर्धमान-दुर्गापुर, बांकुरा, पुरुलिया, तमलुक, कोलकाता उत्तर और जादवपुर जैसे लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं जहां त्रिकोणीय लड़ाई देखने को मिल सकती है. उल्लेखनीय है कि 2019 के संसदीय चुनाव में इनमें से आठ सीट तृणमूल ने और बाकी सीट भाजपा ने जीती थीं.