नयी दिल्ली, 12 अगस्त दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता के 22 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति दी है।
राम मनोहर लोहिया अस्पताल द्वारा स्थापित एक चिकित्सकीय बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया था कि गर्भ जारी रखने से पीड़िता को मनोवैज्ञानिक समस्याएं हो सकती हैं जिसके बाद अदालत ने यह निर्णय दिया।
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हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि रक्त की जांच सामने आने के बाद पीड़िता के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव की समीक्षा करने के बाद ही गर्भपात कराया जाएगा।
अदालत ने कहा कि गर्भपात की प्रक्रिया तभी शुरू की जा सकती है जब उसकी जांच के नतीजों में किसी अतिरिक्त खतरे की आशंका न हो।
न्यायमूर्ति विभु बाखरू ने कहा, “अदालत इस याचिका को स्वीकार करती है और याचिकाकर्ता को डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कर गर्भपात कराने की प्रक्रिया को मंजूरी देती है।”
कानूनी रूप से गर्भधारण 20 सप्ताह से ज्यादा होने पर गर्भपात की अनुमति नहीं दी सजा सकती।
अदालत ने 16 वर्षीय बलात्कार पीड़िता की याचिका पर फैसला सुनाया।
न्यायमूर्ति बाखरू ने किशोरी और उसके पिता से वीडियो कांफ्रेंस के जरिये बातचीत की और इस बात का संज्ञान लिया कि किशोरी अत्यंत तनाव में है और उसके पिता भी गर्भपात कराना चाहते हैं।
अदालत ने कहा कि गर्भपात से संबंधित जटिलताओं और खतरे के बारे में किशोरी और उसके पिता को जानकारी दी गई है।
मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने आरएमएल अस्पताल के अधीक्षक को चिकित्सकीय बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया और कहा कि गर्भपात से किशोरी को उत्पन्न होने वाले खतरे के संबंध में जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
डिजिटल माध्यम से की गई सुनवाई में डॉक्टरों ने अदालत को बताया कि मनोवैज्ञानिकों ने किशोरी का परीक्षण करने के बाद कहा कि गर्भ जारी रखने से उसे मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
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