नयी दिल्ली, 11 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को तमिलनाडु सरकार को राज्य के सभी मंदिरों के लिए ‘‘आरंगवलर समिति’’ (न्यासी समिति) की नियुक्ति के संबंध में अपनी प्रस्तावित कार्रवाई की जानकारी देने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने तमिलनाडु सरकार के वकील से कहा, ‘‘आप (राज्य सरकार) जो भी करना चाहते हैं, इस बारे में एक हलफनामा दायर करें।’’
यह निर्देश तब आया जब राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उसने 31,000 मंदिरों से न्यासी समितियों की नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे थे और केवल 7,500 से अधिक मंदिरों में ही ऐसी समितियां नियुक्त की गई हैं, कई मंदिरों ने अब तक जवाब नहीं दिया है।
पीठ ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया और याचिकाकर्ता ‘‘हिंदू धर्म परिषद’’ की याचिका को फरवरी, 2025 में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि सरकार द्वारा इस संबंध में विज्ञापन जारी करने के बावजूद मंदिर न्यास में नियुक्ति के लिए बहुत कम लोग आगे आए।
याचिकाकर्ता संस्था के वकील ने दावा किया कि राज्य में करीब 40,000 मंदिर हैं और रखरखाव नहीं होने के कारण कई पुराने मंदिर क्षतिग्रस्त हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए चढ़ावे का कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा मंदिरों के रख-रखाव पर खर्च किया जाना चाहिए।
पीठ नौ दिसंबर, 2021 के मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जब न्यायमूर्ति पुष्पा सत्यनारायण ने राज्य के सभी मंदिरों के लिए आरंगवलर समिति की नियुक्ति की याचिका खारिज कर दी थी।
उच्च न्यायालय में दायर याचिका में मंदिर के मामलों के प्रबंधन के लिए ऐसी समितियों में एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, एक सामाजिक कार्यकर्ता, एक श्रद्धालु, अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति के अलावा एक महिला को शामिल करने का अनुरोध किया गया था।
यह दलील दी गई थी कि राज्य में कई मंदिरों का रखरखाव ठीक से नहीं किया जा रहा है और बीते समय में उन्हें नुकसान पहुंचा है।
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