नयी दिल्ली, 23 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने पूर्व सांसद अतीक अहमद के बेटे मोहम्मद उमर को अपहरण और उत्तर प्रदेश की एक जेल में एक व्यापारी पर हमले के मामले में अग्रिम जमानत प्रदान करने से मंगलवार को इनकार कर दिया और कहा कि देश में ‘‘कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोग’’ हैं जिन्हें ‘‘पुलिस गैर-जमानती वारंट के बावजूद पकड़ने में सक्षम नहीं है।’’
न्यायमूर्ति एन वी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की एक पीठ ने उमर द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 7 दिसंबर, 2020 के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई याचिका खारिज कर दी जो जिसमें उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि पुलिस (सीबीआई) आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है।
पीठ ने कहा, ‘‘इस देश में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोग हैं, जिनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट के बावजूद पुलिस उन्हें पकड़ने में सक्षम नहीं है।’’
उसने कहा कि पुलिस उमर के खिलाफ गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट की तामील नहीं कर पायी है।
पीठ ने आगे कहा, ‘‘हमें उच्च न्यायालय द्वारा याचिकाकर्ता की दूसरी अग्रिम जमानत अर्जी खारिज करने के पारित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है। तदनुसार, विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।’’
सुनवाई के दौरान, उमर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पी. एस. पटवालिया ने कहा कि वह (मोहम्मद उमर) एक युवा छात्र हैं जो एक निजी विश्वविद्यालय से कानून की पढायी कर रहे हैं और उनके खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने जेल में एक व्यापारी को पीटा जहां उनके पिता बंद हैं।
उन्होंने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जाता है कि उमर उस दिन उत्तर प्रदेश की देवरिया जेल में थे, तब वह अपने पिता से मिलने गए थे।
पीठ ने हालांकि पटवालिया से कहा कि पुलिस जब उन्हें पकड़ने में सक्षम नहीं है, तो फिर वह उन्हें मामले में अग्रिम जमानत कैसे दे सकती है।
पटवालिया ने कहा कि वह एक युवा हैं जिसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
वरिष्ठ वकील ने दलील दी, ‘‘उनके पिता के खिलाफ कई मामले हो सकते हैं लेकिन उनके बेटे के खिलाफ एक भी मामला नहीं है।’’
पीठ ने हालांकि, उनकी दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और उमर की अपील को खारिज कर दिया।
व्यवसायी मोहित जायसवाल ने 28 दिसंबर, 2018 को एक प्राथमिकी दर्ज करायी थी जिसमें उन्होंने आरोप लगाया गया था कि उन्हें लखनऊ से अगवा कर जेल ले जाया गया था जहां उन पर जेल में बंद डॉन, उनके बेटे और सहयोगियों ने हमला किया और अपना व्यवसाय उन्हें स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया गया था।
लखनऊ के रहने वाले रियल्टर जायसवाल ने आरोप लगाया था कि उन्हें अपनी पांच कंपनियों को पूर्व सांसद के नाम पर स्थानांतरित करने के लिए यातना दी गई थी और मजबूर किया गया था।
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