नयी दिल्ली, 20 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए अपने कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित 21 नामों के लंबित होने पर शुक्रवार को केंद्र से कहा कि उसकी ‘‘चयनात्मक’’ प्रवृत्ति बहुत सारी समस्याएं पैदा कर रही है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि मौजूदा स्थिति के अनुसार पांच दोहराए गए नाम, पांच पहली बार अनुशंसित और 11 तबादलों के नाम सरकार के पास लंबित हैं। केंद्र ने पीठ से दो सप्ताह का समय देने का अनुरोध किया और कहा कि प्रक्रिया जारी है।
पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘यह चयनात्मक प्रवृत्ति बहुत सारी समस्याएं पैदा करती है।’’ न्यायमूर्ति कौल शीर्ष अदालत के कॉलेजियम के सदस्य भी हैं।
पीठ दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा देरी का आरोप लगाया गया है।
पीठ ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया परामर्शात्मक है लेकिन तबादलों के मामले में जिनके नाम की सिफारिश की गई है वह पहले से ही न्यायाधीश हैं और कॉलेजियम के पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों के विवेक में उनसे किसी अन्य अदालत में बेहतर सेवा करने की अपेक्षा की जाती है।
पीठ ने कहा कि यह धारणा नहीं होनी चाहिए कि किसी के लिए देरी हो रही है जबकि किसी और के लिए कोई देरी नहीं है। न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘मुझे इस बात की सराहना करनी चाहिए कि पिछले एक महीने में काफी प्रगति हुई है, (ऐसा कुछ) जो पिछले पांच-छह महीनों में नहीं हुई थी।’’
हालांकि, उन्होंने कहा, ‘‘नियुक्ति प्रक्रिया में जब आप कुछ को नियुक्त करते हैं और दूसरों को नियुक्त नहीं करते हैं, तो वरिष्ठता का आधार ही गड़बड़ा जाता है।’’
अदालत ने कहा कि पीठ में शामिल होने का प्रोत्साहन तब बदल जाता है जब नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी होती है और कोई इसे दिल पर लेता है या छोड़ देता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसका रुख क्या है।
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वकील ने कहा कि जहां तक दोहराए गए नामों का सवाल है तो शीर्ष अदालत ने उन्हें मंजूरी देने के लिए पहले ही समयसीमा तय कर दी है। पीठ ने केंद्र के वकील से कहा, ‘‘स्थानांतरण पर, इसे उस स्तर पर न ले जाएं जहां हमें यह कहना पड़े कि क्या उन्हें (स्थानांतरण के लिए अनुशंसित न्यायाधीशों को) वर्तमान अदालतों में अपना कार्य करना चाहिए या वहां अपना कार्य नहीं करना चाहिए।’’
केंद्र के वकील द्वारा प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए दो सप्ताह का समय मांगे जाने के अनुरोध पर पीठ ने कहा, ‘‘जो किया गया है उसकी हम सराहना करते हैं लेकिन और अधिक प्रयास करना जरूरी है।’’
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ताओं में से एक ने नियुक्ति और तबादलों के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों के संबंध में केंद्र द्वारा ‘चयनात्मक’ तौर तरीके पर आपत्ति जताई। अदालत ने माना, ‘‘यह परेशानी भरा है।’’
पीठ ने केंद्र के वकील से कहा, ‘‘यह बात आपको यह बताने के लिए है कि ऐसा नहीं होना चाहिए।’’
पीठ ने कहा कि प्रक्रिया में देरी के कारण कुछ ने हताश होकर न्यायाधीश पद पर पदोन्नति के लिए अपना नाम वापस ले लिया है। न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘हमने अच्छे लोगों (न्यायाधीशों) को खो दिया है। मैं कहता रहता हूं कि इन दिनों लोगों को इस तरफ (पीठ के पास) लाना एक चुनौती है। अगर ऐसा होता है तो लोगों को इस तरफ लाना एक बड़ी चुनौती बन जाती है।’’
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई सात नवंबर को तय की और कहा कि केंद्र के वकील ने अदालत को आश्वासन दिया है कि इन मुद्दों को सुलझाया जा रहा है। जब केंद्र के वकील ने कहा कि मामले को सात नवंबर के बाद एक सप्ताह के लिए टाला जा सकता है, तो पीठ ने कहा, ‘‘हमें दिवाली से पहले कुछ आगे बढ़ने दीजिए। हम इसे बेहतर तरीके से मनाएंगे।’’
कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्चतम न्यायालय और केंद्र के बीच टकराव का एक प्रमुख मुद्दा बन गई है। शीर्ष अदालत जिन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, उनमें एडवोकेट एसोसिएशन बेंगलुरु द्वारा दायर एक याचिका भी शामिल है। इस याचिका में 2021 के फैसले में अदालत द्वारा निर्धारित समयसीमा का पालन नहीं करने के लिए केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के खिलाफ अवमानना कार्रवाई का अनुरोध किया गया है।
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