देश की खबरें | अदालत ने मप्र सरकार को यूनियन कार्बाइड अपशिष्ट निपटान पर कार्रवाई के लिए छह सप्ताह का समय दिया

जबलपुर, छह जनवरी मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के 337 टन खतरनाक अपशिष्ट के निपटान के लिए सोमवार को कोई नया आदेश देने से इनकार कर दिया और राज्य सरकार को छह सप्ताह में सुरक्षा दिशानिर्देशों के अनुसार कदम उठाने का निर्देश दिया।

उच्च न्यायालय ने मीडिया को अपशिष्ट निपटान के मुद्दे पर गलत खबरें नहीं देने का भी निर्देश दिया।

मुख्य न्यायाधीश एस के कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने कहा कि दिसंबर 2024 का उसका वह आदेश पर्याप्त था , जिसमें भोपाल संयंत्र से सभी अपशिष्ट पदार्थों को निपटान के लिए ले जाने का निर्देश दिया गया था, इसलिए किसी और आदेश या निर्देश की आवश्यकता नहीं है।

राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे महाधिवक्ता ने धार जिले के पीथमपुर कस्बे में खड़े कंटेनर ट्रकों से विषाक्त पदार्थ उतारने के लिए उच्च न्यायालय से अनुमति मांगी थी।

जहरीले रासायनिक अपशिष्ट का भोपाल से 250 किलोमीटर दूर धार जिले के औद्योगिक शहर पीथमपुर में निपटारा किया जाना है, लेकिन इस कदम का स्थानीय निवासियों द्वारा विरोध किया जा रहा है।

खतरनाक कचरे के निपटान के मुद्दे पर 2004 की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि अब उससे किसी और निर्देश की आवश्यकता नहीं है तथा निपटान के लिए कदम उठाना सरकार का काम है।

चार पन्नों के आदेश में कहा गया है, "यहां यह उल्लेख करना उचित है कि दिनांक 03.12.2024 के आदेश के अनुसार, इस अदालत ने भोपाल से अपशिष्ट पदार्थ लाने और मानदंडों के अनुसार उसका निपटान करने का निर्देश दिया था। इस प्रकार, अपशिष्ट पदार्थ को उतारने के लिए कोई और आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है। इस न्यायालय के (तीन दिसंबर के) निर्देश के अनुसार अपशिष्ट पदार्थ को उतारना और उसका निपटान करना राज्य का काम है।"

राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हलफनामे में अदालत को सूचित किया कि पिछले साल तीन दिसंबर के आदेश के अनुसार, कचरे को 12 अग्निरोधक और रिसाव रोधी कंटेनरों में भरा गया और पुलिस एवं प्रशासन के सहयोग से एक जनवरी की रात को ट्रकों में ले जाया गया।

राज्य सरकार के हलफनामे में कहा गया है, "काफिले को एक ‘ग्रीन कॉरिडोर’ प्रदान किया गया और परिवहन स्वीकृत एसओपी और निविदा आवश्यकताओं के अनुसार किया गया जो पूरी तरह से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों के अनुरूप थे।"

सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि मीडिया में कुछ काल्पनिक रिपोर्ट के कारण लोगों में भारी आक्रोश है, जिसमें "मीडिया के विभिन्न वर्गों द्वारा निराधार अफ़वाहें फैलाई गई हैं, ताकि यह छवि बनाई जा सके कि यदि कचरे का पीथमपुर स्थित संयंत्र में उतारकर निपटारा किया गया तो एक और औद्योगिक आपदा घटित होगी, जिससे पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।"

अदालत ने प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को निर्देश दिया कि "अपशिष्ट सामग्री के निपटान के मामले में कोई भी ऐसी झूठी खबर प्रकाशित न करें, जो वास्तविक न हो या किसी आधार/साक्ष्य पर आधारित न हो।" राज्य सरकार ने अदालत को यह भी बताया कि जनता में विश्वास पैदा करने और "तथ्यात्मक जानकारी देकर उनके मिथकों को दूर करने के लिए उसे कुछ समय की आवश्यकता होगी, ताकि लोग झूठी खबरों और बदमाशों एवं निहित स्वार्थों द्वारा फैलाई गई गलत सूचनाओं से गुमराह न हों।"

अदालत ने सरकार को अपने तीन दिसंबर के आदेश का पालन करने के लिए छह सप्ताह का और समय दिया।

उच्च न्यायालय ने तीन दिसंबर के आदेश में राज्य अधिकारियों को भोपाल में अब बंद हो चुकी यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में पड़े जहरीले कचरे का निपटान करने का निर्देश दिया था।

अदालत ने कहा था कि गैस त्रासदी के 40 वर्ष बाद भी अधिकारी "निष्क्रियता की स्थिति" में हैं, जिससे "एक और त्रासदी" हो सकती है।

इसे "दुखद स्थिति" बताते हुए उच्च न्यायालय ने सरकार से चार सप्ताह के भीतर खतरनाक कचरे को फैक्टरी से हटाने और उसका निपटान करने को कहा था। उसने कहा था कि ऐसा न करने पर उसे अवमानना ​​कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा।

आदेश के बाद, एक और दो जनवरी की मध्य रात्रि को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने से कचरे को पीथमपुर में निपटान स्थल पर स्थानांतरित कर दिया गया। कचरे को स्थानांतरित करने के कारण औद्योगिक शहर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए और पिछले शुक्रवार को पीथमपुर बचाओ समिति के बंद के आह्वान के बीच दो लोगों ने आत्मदाह का प्रयास किया।

जिला मुख्यालय और राज्य के एक प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित इस शहर में शुक्रवार और शनिवार को विरोध प्रदर्शन हुए। इस दौरान दो लोगों ने आत्मदाह का प्रयास किया, निवासियों ने धरना दिया और एक भीड़ ने उस इकाई के मुख्य द्वार पर पथराव किया, जहां अपशिष्ट का निपटान किया जाना था।

सोमवार को, यहां बाजार खुले रहे, लोग अन्य दिनों की तरह सड़कों पर घूमते-फिरते दिखे और 1.75 लाख की आबादी वाले शहर के अधिकांश हिस्सों से पुलिस अवरोधक हटा दिए गए।

गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए काम कर रहे संगठन ‘भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन’ (बीजीआईए) की रचना डिंगरा ने अदालत से व्यक्तिगत रूप से कहा कि यूनियन कार्बाइड और (इसके वर्तमान मालिक) डॉव केमिकल्स को जहरीले कचरे को अमेरिका या किसी ओईसीडी देश में ले जाने के लिए कहा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के पिछले आदेश (तीन दिसंबर, 2024) में पूरे जहरीले पदार्थ को हटाने के लिए कहा गया था और तर्क दिया गया था कि कारखाने से ले जाया गया 337 टन कचरा, कुल कचरे का केवल एक प्रतिशत है।

डिंगरा ने अदालत को बताया कि कारखाने के अंदर और बाहर लगभग 11 लाख टन कचरा पड़ा हुआ है, जिसने एक लाख से अधिक की आबादी वाले 42 समुदायों में भूजल को दूषित कर दिया है।

बीजीआईए के वकील अवी सिंह ने दिल्ली से अदालत को ऑनलाइन बताया कि राज्य सरकार के वकील ने बताया है कि उन्होंने बिना यह जांचे कि यह किस तरह का जहरीला पदार्थ है, उसे हटा दिया है।

सिंह ने तर्क दिया, "उन्होंने 10 साल से वहां मौजूद दूषित मिट्टी की कोई जांच शुरू नहीं की है। राज्य केवल न्यूनतम या सतही तौर पर उच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं कर सकता और यह नहीं कह सकता कि हमने पहला कदम उठा लिया है।"

याचिकाकर्ता दिवंगत आलोक प्रताप सिंह का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने कहा कि कचरे का सुरक्षित तरीके से निपटान किया जाना चाहिए।

आलोक सिंह ने फैक्टरी के कचरे को हटाने और निपटाने के संबंध में 2004 में याचिका दायर की थी। दिसंबर 1984 में फैक्टरी से जहरीली गैस के रिसाव के बाद कुल 5,479 लोग मारे गए थे।

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