नयी दिल्ली, छह अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधीशों को धमकी और अपशब्दों वाले संदेश मिलने की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए शुक्रवार को कहा कि गुप्तचर ब्यूरो (आईबी) और सीबीआई न्यायपालिका की ‘‘बिल्कुल मदद नहीं’’ कर रही हैं और एक न्यायिक अधिकारी को ऐसी शिकायत करने की भी स्वतंत्रता नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि गैंगस्टर और हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों से जुड़े कई आपराधिक मामले हैं और कुछ स्थानों पर, निचली अदालत के साथ-साथ उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी व्हाट्सएप या फेसबुक पर अपशब्दों वाले संदेशों के माध्यम से धमकी दी जा रही है।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा, ‘‘एक या दो जगहों पर, अदालत ने सीबीआई जांच का आदेश दिया। यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है कि सीबीआई ने एक साल से अधिक समय में कुछ नहीं किया है। एक जगह, मैं जानता हूं, सीबीआई ने कुछ नहीं किया है। मुझे लगता है कि हमें सीबीआई के रवैये में कुछ बदलाव की उम्मीद थी लेकिन सीबीआई के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है। मुझे यह कहते हुए खेद है, लेकिन यही स्थिति है।’’
पीठ ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें गैंगस्टर और हाई-प्रोफाइल व्यक्ति शामिल हैं और यदि उन्हें अदालत से उम्मीद के अनुरूप फैसला नहीं मिलता तो वे न्यायपालिका को छवि धूमिल करना शुरू कर देते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से यह देश में विकसित एक नया चलन है। न्यायाधीश को शिकायत करने तक की स्वतंत्रता नहीं है। ऐसी स्थिति उत्पन्न की जाती है।’’
पीठ धनबाद में एक न्यायाधीश की कथित तौर पर वाहन से कुचलने से मौत की हालिया घटना के मद्देनजर अदालतों और न्यायाधीशों की सुरक्षा के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिये मामले की सुनवाई कर रही थी।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हालांकि न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश या जिले के संबंधित प्रमुख से शिकायत करते हैं, जब वे पुलिस या सीबीआई या अन्य से शिकायत करते हैं, तो ये एजेंसियां प्रतिक्रिया नहीं करती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें लगता है कि यह उनके लिए प्राथमिकता वाली चीज नहीं है। आईबी, सीबीआई, वे न्यायपालिका की बिल्कुल भी मदद नहीं कर रहे हैं। मैं जिम्मेदारी की भावना के साथ यह बयान दे रहा हूं और मैं उस घटना को जानता हूं जिसके कारण मैं ऐसा कह रहा हूं। मैं इससे ज्यादा खुलासा नहीं करना चाहता।’’
पीठ ने इस मुद्दे को "गंभीर" करार दिया और वेणुगोपाल से कहा कि न्यायपालिका की मदद के लिए कुछ दिलचस्पी लेनी होगी।
वेणुगोपाल ने कहा कि आपराधिक मामलों से निपटने वाले न्यायाधीश बहुत जोखिम में होते हैं और कहा कि उनके लिए सुरक्षा उपाय होने चाहिए।
उन्होंने कहा कि न्यायाधीश उन नौकरशाहों की तुलना में अधिक असुरक्षित होते हैं जो अपने कमरे के चारों कोनों के भीतर निर्णय लेते हैं।
वेणुगोपाल ने कहा कि वह इस मुद्दे पर अपना लिखित नोट दाखिल करेंगे।
इस बीच, झारखंड सरकार द्वारा यह सूचित किए जाने के बाद पीठ ने सीबीआई को नोटिस जारी किया कि धनबाद में न्यायाधीश की मौत मामले की जांच जांच एजेंसी को सौंप दी गई है।
शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों से स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है जिसमें बताया जाए कि वे न्यायिक अधिकारियों को क्या सुरक्षा मुहैया करा रहे हैं।
शुरुआत में, झारखंड के महाधिवक्ता राजीव रंजन ने पीठ को बताया कि राज्य ने 22 सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था, जिसने उस ऑटो-रिक्शा के दो चालकों को गिरफ्तार किया था, जिन्होंने 28 जुलाई को न्यायाधीश को उस समय टक्कर मार दी थी जब वह सुबह की सैर पर थे।
रंजन ने कहा कि मामला अब सीबीआई को सौंप दिया गया है। पीठ ने कहा, ‘‘तो, आपने अपने हाथ धो लिए हैं?’’
इस पर, रंजन ने कहा कि एसआईटी ने कई सबूत एकत्र किए थे और चूंकि यह क्षेत्र पश्चिम बंगाल के साथ एक सीमावर्ती जिला है, इसलिए एक बड़ी साजिश और सीमापार प्रभाव हो सकता है।
पीठ ने कहा, ‘‘हम सोमवार (9 अगस्त) को झारखंड मामले की सुनवाई करेंगे। हम सीबीआई को नोटिस जारी कर रहे हैं।’’
पीठ ने झारखंड के वकील से पूछा कि क्या उन्होंने राज्य में न्यायाधीशों के आवास पर पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की है।
वकील ने कहा कि आदेश जारी कर दिए गए हैं और न्यायिक अधिकारियों के आवासों और कॉलोनियों में पर्याप्त पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई गई है।
धनबाद की घटना का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण मामला है जिसमें एक युवा न्यायिक अधिकारी ने अपनी जान गंवा दी।
पीठ ने कहा, ‘‘हम राज्य की लापरवाही को नजरअंदाज नहीं कर सकते। हम जानते हैं कि धनबाद क्षेत्र में माफिया, कोयला माफिया हैं। अधिवक्ता की हत्या की गई, न्यायाधीशों पर हमले हुए लेकिन इसके बावजूद राज्य ने कुछ नहीं किया।’’
राज्य के वकील ने पीठ को इस संबंध में उठाए जा रहे कदमों से अवगत कराया। वकील ने साथ ही अदालत परिसर में और सीसीटीवी कैमरे लगाकर और चारदीवारी लगाकर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने से भी अवगत कराया।
पीठ ने कहा कि कट्टर अपराधियों को इन चारदीवारी से नहीं रोका जा सकता।
सुनवाई के दौरान, पीठ ने वेणुगोपाल को बताया कि 2019 में शीर्ष अदालत में एक रिट याचिका दायर की गई थी, जिसमें अदालत परिसर में सुरक्षा सहित ऐसा माहौल बनाने के लिए कुछ निर्देशों का अनुरोध किया गया था जिसमें न्यायाधीश स्वतंत्र रूप से काम कर सकें।
पीठ ने कहा, ‘‘उस मामले में, ऐसा प्रतीत होता है कि भारत सरकार ने अब तक कोई जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया है।’’
जब वेणुगोपाल ने कहा कि वह इसे देखेंगे तो पीठ ने उनसे यह सुनिश्चित करने को कहा कि जवाबी हलफनामा दाखिल किया जाए ताकि अदालत मामले में अंतिम फैसला ले सके।
2019 में दायर याचिका का भी स्वत: संज्ञान मामले के साथ पीठ द्वारा सुनवाई के लिए लिया गया था।
शीर्ष अदालत ने राज्यों को न्यायाधीशों को प्रदान की गई सुरक्षा के संबंध में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा और इसकी सुनवायी 17 अगस्त को करना तय किया।
धनबाद अदालत के जिला एवं सत्र न्यायाधीश-8 उत्तम आनंद 28 जुलाई को सुबह की सैर पर निकले थे, तभी सदर थानाक्षेत्र में जिला अदालत के पास रणधीर वर्मा चौक पर एक ऑटो-रिक्शा ने उन्हें टक्कर मार दी थी जिससे उनकी मौत हो गई थी।
30 जुलाई को, शीर्ष अदालत ने स्वत: संज्ञान लिया था और जांच पर झारखंड के मुख्य सचिव और डीजीपी से एक सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट मांगी थी और कहा था कि खबरें और वीडियो क्लिप से संकेत मिलता है कि ‘‘यह साधारण सड़क दुर्घटना का मामला नहीं था।’’
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