नयी दिल्ली, छह अगस्त दिल्ली उच्च न्यायालय ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) को प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के दो पदों पर नियुक्ति नहीं करने का निर्देश दिया है। कुछ शिक्षकों ने इन पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया को चुनौती दी है।
अदालत दो असिस्टेंट प्रोफेसरों की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दावा किया गया था कि वे आरक्षित श्रेणी के तहत रिक्तियों के लिए आवेदन करने का प्रस्ताव कर रहे थे। लेकिन विश्वविद्यालय ने उनमें से एक पद को अनुसूचित जाति श्रेणी से अनुसूचित जनजाति श्रेणी में परिवर्तित कर दिया जबकि दूसरे पद को अनारक्षित कर दिया गया।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की पीठ एकल न्यायाधीश के उस ‘अंतर्वादीय आदेश’ के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें नियुक्तियों पर रोक नहीं लगायी गयी थी।
पीठ ने जेएनयू को इन पदों पर कोई नियुक्ति नहीं करने को कहा।
इसके साथ ही पीठ ने एकल न्यायाधीश से अनुरोध किया कि सुनवाई के लिए निधारित तारीख सात अक्तूबर को 31 अगस्त कर दिया जाए तथा पक्षों को गैर-जरूरी स्थगन दिए बिना उसी दिन से सुनवाई शुरू कर दी जाए। एकल न्यायाधीश ने याचिका में विश्वविद्यालय से जवाब मांगा था।
पीठ ने विश्वविद्यालय को दो सप्ताह के भीतर याचिका पर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने का भी निर्देश दिया और उसके बाद दोनों शिक्षक एक सप्ताह के भीतर अपना हलफनामा दाखिल कर सकते हैं।
दोनों शिक्षकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने कहा कि जेएनयू द्वारा 2017 में जारी पहले के विज्ञापन में वे पद आरक्षित थे। लेकिन पिछले साल के विज्ञापन में उन पदों की श्रेणी बदल गयी थी और उसे चुनौती दी जा रही है।
अधिवक्ताओं मानव कुमार, रोशनी नंबूदरी और नूपुर के माध्यम से दायर याचिका में विश्वविद्यालय द्वारा 19 अगस्त 2019 को जारी किए गए दो विज्ञापनों को चुनौती दी गई है।
चुनौती देने वाले शिक्षकों में प्रदीप शिंदे और टी नामग्याल शामिल हैं।
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