ताजा खबरें | कांग्रेस ने लॉकडाउन में जान गंवाने वाले प्रवासी श्रमिकों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग की

नयी दिल्ली, 16 सितंबर कोरोना वायरस से देश में उत्पन्न हालात पर सरकार को घेरते हुए कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने राज्यसभा में बुधवार को मांग की कि लॉकडाउन के कारण हुए फायदे और नुकसान का ब्यौरा देश के समक्ष रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने मांग की कि उन प्रवासी श्रमिकों के परिवारों को मुआवजा दिया जाए जिनकी लॉकडाउन के कारण हजारों किलोमीटर पैदल चल कर अपने गांव लौटने के दौरान मौत हो गयी।

कोविड-19 महामारी के संबंध में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के बयान पर चर्चा में भाग लेते हुए सदन में कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा ने कहा कि सरकार को देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए कदम उठाना चाहिए।

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शर्मा ने कहा कि वर्तमान सत्र में यह कहा गया कि लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों की मृत्यु के संबंध में कोई आंकड़े नहीं हैं और इसलिए कोई मुआवजा नहीं है। यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। उन्होंने सवाल किया कि सरकार के पास इसके आंकड़े क्यों नहीं हैं? हर राज्य जानता है कि किसकी मौत हुयी। उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भविष्य के लिए सरकार को देश में प्रवासी श्रमिकों के संबंध में डेटा बेस बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक रजिस्टर होना चाहिए। जो लोग शहरों में रहते हैं, उन्हें खाद्य सुरक्षा, राशन नहीं मिला है। इस तरह की समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए।

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शर्मा ने कहा कि राज्य सरकारों को विश्वास में लेना चाहिए था जिससे वे बेहतर तैयारी कर सकते थे।

उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन को जानकारी होती है कि निर्माण श्रमिक शिविर कहाँ स्थित हैं और वहां कितने लोग काम करते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और चार घंटे में रेलवे को रोक दिया गया। इससे दुखद दृश्य सामने आए और देश की जो तस्वीर बाहर गई वह अच्छी नहीं थी।

उन्होंने कहा कि लोगों ने हजारों किलोमीटर तक पैदल यात्रा की और कुछ मामलों में तो लोग अपने घर जाने के लिए सीमेंट मिक्सर ट्रकों के अंदर यात्रा करते पाए गए।

शर्मा ने स्वास्थ्य मंत्री के बयान में किए गए इस दावे पर हैरत जतायी कि लॉकडाउन के फैसले के कारण 14 लाख से 29 लाख तक संक्रमण के मामलों को रोकने तथा 37 हजार से 78 हजार लोगों की इस संक्रमण के कारण मौत को रोकने में मदद मिली। उन्होंने प्रश्न किया कि सरकार के इस आंकड़े तक पहुंचने का क्या कोई वैज्ञानिक आधार है?

शर्मा ने सवाल किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लॉकडाउन की पहली बार जो घोषणा की, उसके लिए सरकार ने कितनी तैयारी की थी? उन्होंने कहा कि देश की जनता को यह पता चलना चाहिए कि लॉकडाउन की वजह से कितना फायदा हुआ और कितना नुकसान हुआ?

उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की घोषणा से पहले यदि समुचित तैयारी कर ली जाती तो प्रवासी मजदूरों ने जो पीड़ाएं झेली, उससे बचा जा सकता था।

उन्होंने कहा कि इससे पहले विश्व ने पिछली शताब्दी में एक महामारी का सामना किया था जिसका नाम था, ‘‘स्पेनिश फ्लू’’। उन्होंने कहा कि इसमें विश्व के अन्य हिस्सों के साथ ही भारत में भी बड़ी संख्या में लोगों ने जान गंवायी थी।

उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस जब आया तो शुरू में पूरे विश्व में भय का माहौल बन गया जो आज तक बना हुआ है। उन्होंने कहा कि शुरूआती दो महीनों में यूरोप एवं अमेरिका सहित विभिन्न देशों में बड़ी संख्या में लोग मारे गये।

कांग्रेस नेता ने कहा कि आज डॉक्टरों, नर्सों सहित हमारे चिकित्सा समुदाय की इस संक्रमण से निबटने के बारे में समझ बहुत बेहतर हुई है। लेकिन अभी तक इसके लिए कोई नयी दवा विकसित नहीं हो पायी है।

उन्होंने कहा कि कल स्वास्थ्य मंत्री ने जो बयान दिया है, उसमें ताजा आंकड़े नहीं दिये गये हैं। दिये गए आंकड़े पुराने हैं।

शर्मा ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री ने बयान में बताया कि भारत में प्रति दस लाख संक्रमित व्यक्तियों पर 55 लोगों की मौत हुई है जो विश्व में सबसे कम दर है। कांग्रेस सदस्य ने सरकार का ध्यान दिलाया कि श्रीलंका समेत कई दक्षिण एशियाई देशों में भी इससे मरने वालों की संख्या काफी कम है।

उन्होंने कहा कि कई अफ्रीकी देशों में भी यह दर काफी कम है। उन्होंने सरकार से यह जानना चाहा कि जिन देशों में बीसीजी के टीके लगाए गये थे वहां क्या कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वाले लोगों की दर कम है?

उन्होंने कहा कि इस महामारी ने इस बात को उजागर किया कि हमारे देश में स्वास्थ्य का आधारभूत ढांचा कितना कमजोर है। उन्होंने कहा कि देश में आक्सीजन सुविधा वाले सघन चिकित्सा केन्द्र के 70 प्रतिशत बिस्तर निजी अस्पतालों और 30 प्रतिशत सरकारी अस्पतालों में हैं।

शर्मा ने कहा कि केन्द्र को राज्य सरकारों से बात कर सरकारी अस्पतालों में आधारभूत ढांचे को मजबूत करना चाहिए क्योंकि इस महामारी के दौरान जिन सरकारी अस्पतालों में देश के महज 30 प्रतिशत आईसीयू बिस्तर हैं, उन्होंने देश के 70 प्रतिशत कोविड-19 मरीजों का उपचार किया।

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