
प्रयागराज, नौ मई इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दोहराया है कि ग्राम सभा की जमीन पर अवैध अतिक्रमण के खिलाफ लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 के तहत मुकदमा पोषणीय नहीं (नहीं चल सकता) है और जमीन खाली कराने के लिए राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के तहत कार्यवाही की जा सकती है।
इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने याचिकाकर्ता ब्रह्मदत्त यादव के खिलाफ लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा रद्द कर दिया और इसके लिए उन्होंने मुंशी लाल एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश के मामले में पूर्व के निर्णय का हवाला दिया।
मुंशी लाल के मामले में कहा गया था कि जहां तक ग्राम सभा की जमीन पर अवैध अतिक्रमण के लिए आपराधिक मुकदमे का संबंध है, यह विवादित संपत्ति पर पक्षों के अधिकारों के निर्णय से जुड़ा होगा और इसका निर्धारण राजस्व अदालत द्वारा ही किया जा सकता है।
मौजूदा मामले में लेखपाल ने याचिकाकर्ता के खिलाफ लोक संपत्ति नुकसान निवारण की धारा 3/5 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई जिसमें उसने आरोप लगाया कि सर्वेक्षण के दौरान उसने पाया कि ग्राम सभा की जमीन पर आसपास के किसानों द्वारा अतिक्रमण किया गया है। इससे लोक संपत्ति को नुकसान पहुंचा। इसके बाद आरोप पत्र दाखिल किया गया और समन जारी किया गया जिसे याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा समन का आदेश जारी करते समय विवेक का उपयोग नहीं किया गया। अतिक्रमण से जुड़ा यह मुद्दा राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के तहत तय किया जाना था।
मुंशी लाल एवं अन्य के मामले में निर्णय का संज्ञान लेते हुए अदालत ने कहा कि 1984 के अधिनियम का उद्देश्य दंगे और जनता के हंगामे के दौरान सरकारी संपत्ति को नुकसान पर अंकुश लगाने के लिए है।
अदालत ने 15 अप्रैल को दिए अपने निर्णय में कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ 1984 के अधिनियम के तहत मुकदमा चलने देना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है इसलिए अदालत इस मुकदमे को रद्द करती है।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)