मुंबई, 25 जुलाई बंबई उच्च न्यायालय ने बाल कल्याण समिति को तीन बच्चों को उनके दत्तक माता-पिता को सौंपने का आदेश दिया है, भले ही उन्होंने अभी तक कानूनी रूप से इन बच्चों को गोद नहीं लिया है।
अदालत ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दत्तक माता-पिता ने गोद लेने के कानून के तहत तय नियमों का अनुपालन नहीं किया लेकिन बच्चों के हित को सर्वोपरि रखना होगा।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने 22 जुलाई को यह फैसला सुनाया जिसकी प्रति बृहस्पतिवार को उपलब्ध कराई गई। अदालत ने रेखांकित किया कि डेढ़ और तीन साल के ये तीनों बच्चे दत्तक माता-पिता के पास शिशुकाल से थे।
अदालत ने तीन दंपत्तियों द्वारा दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर फैसला सुनाया जिसमें बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी)के उस आदेश को चुनौती दी गई जिसमें तीनों बच्चों का सरंक्षण उसने अपने हाथ में ले लिया और गैर सरकारी संगठन बाल आशा ट्रस्ट की देखरेख में उन्हें रख दिया।
मुंबई पुलिस ने अप्रैल 2024 को भारतीय दंड संहिता और किशोर न्याय (देखभाल और बाल संरक्षण) अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की और दावा किया कि इन बच्चों को कानूनी रूप से गोद नहीं लिया गया था बल्कि जैविक माता-पिता ने उन्हें याचिकाकर्ताओं को बेच दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने संबंधित बच्चों के जैविक माता-पिता से गोद लेने का करार किया था। इसमें यह भी दावा किया गया कि याचिकाकर्ता आर्थिक रूप से संपन्न हैं और बच्चों की जरूरतों और शिक्षा का खर्च वहन कर सकते हैं।
पीठ ने कहा कि चूंकि तीनों बच्चे तकनीकी रूप से परित्यक्त, सौंपे गए या अनाथ नहीं थे, इसलिए सीडब्ल्यूसी द्वारा बच्चों की अभिरक्षा आश्रय गृह को सौंपने का आदेश अवैध था।
अदालत ने कहा कि बच्चे तब से याचिकाकर्ताओं के परिवारों के पास थे जब वे नवजात थे और इसलिए अब वे उनके परिवारों का हिस्सा हैं।
अदालत ने आदेश में कहा, ''बच्चों के सर्वोपरि हित को ध्यान में रखते हुए, हम बाल कल्याण समिति और बाल आशा ट्रस्ट को निर्देश जारी करते हैं कि वे बच्चों की अभिरक्षा तुरंत संबंधित याचिकाकर्ताओं को सौंप दें।''
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