नयी दिल्ली, 10 जुलाई उच्चतम न्यायालय सोमवार को तेलुगू कवि और भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले के एक आरोपी पी वरवर राव की याचिका पर सुनवाई करने वाला है, जिन्होंने मामले में चिकित्सा आधार पर स्थायी जमानत के लिए अर्जी को खारिज करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है।
न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की तीन सदस्यीय पीठ इस मामले पर सुनवाई कर सकती है। राव ने बंबई उच्च न्यायालय के 13 अप्रैल के आदेश के खिलाफ वकील नूपुर कुमार के जरिए दाखिल याचिका में कहा है, ‘‘याचिकाकर्ता (राव) विचाराधीन कैदी के रूप में दो साल से अधिक समय तक जेल में रहे हैं और वर्तमान में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा चिकित्सा आधार पर जमानत की अर्जी को खारिज करने के खिलाफ विनम्रतापूर्वक कहना चाहते हैं कि आगे की कैद बढ़ती उम्र और बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण उनके लिए जानलेवा साबित हो सकती है।’’
राव (83) ने कहा कि उन्होंने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है क्योंकि बढ़ती उम्र और अनिश्चित तथा बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति के बावजूद उनकी जमानत को नहीं बढ़ाया गया और हैदराबाद में स्थानांतरित करने की उनकी प्रार्थना को भी अस्वीकार कर दिया गया।
राव को 28 अगस्त, 2018 को उनके हैदराबाद स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया था और वह भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी हैं। पुणे पुलिस ने उनके खिलाफ 8 जनवरी, 2018 को विश्रामबाग थाने में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
शुरुआत में, राव ने कहा कि उन्हें शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार नजरबंद रखा गया था और आखिरकार, 17 नवंबर, 2018 को उन्हें पुलिस हिरासत में ले लिया गया और बाद में तलोजा जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। बंबई उच्च न्यायालय ने 22 फरवरी, 2021 को उन्हें चिकित्सा आधार पर जमानत दे दी और उन्हें 6 मार्च, 2021 को जेल से रिहा कर दिया गया।
जेल में परेशानी सहित अपने स्वास्थ्य की स्थिति का विस्तृत विवरण देते हुए, राव ने कहा कि 22 फरवरी, 2021 के उच्च न्यायालय के आदेश में विचार किया गया था कि याचिकाकर्ता को एक विस्तारित अवधि के लिए चिकित्सा आधार पर जमानत दी जा सकती है और चिकित्सीय जांच रिपोर्ट के जरिये उनके स्वास्थ्य की स्थिति का समर्थन किये जाने पर चिकित्सा आधार पर स्थायी रूप से भी जमानत दी जा सकती है।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वास्थ्य और चिकित्सा उपचार का अधिकार है और अगर उन्हें तलोजा जेल में कैद किया जाता है तो इसका उल्लंघन होगा। उच्च न्यायालय ने 13 अप्रैल को अर्जी को खारिज कर दिया था लेकिन 83 वर्षीय राव के लिए तलोजा जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने का समय तीन महीने बढ़ा दिया था, ताकि वह मोतियाबिंद की सर्जरी करा सकें।
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया कि अगले दिन पश्चिमी महाराष्ट्र के शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई। बाद में मामले की जांच राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने अपने हाथ में ले ली।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)