नयी दिल्ली, 31 दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महिला की मौत को लेकर चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह करने वाली उसके पति की याचिका को हाल में खारिज करते हुए कहा कि चिकित्सा लापरवाही सिर्फ देखभाल के अपेक्षित मानक के प्रति असंतोष से स्थापित नहीं होती है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने 20 दिसंबर के अपने फैसले में कहा कि चिकित्सकों को मरीज के परिवार की अपेक्षाओं या निर्धारित समय-सीमा से बाध्य नहीं होना चाहिए।
न्यायाधीश ने कहा, “यह याद रखना अत्यंत अहम है कि चिकित्सकीय लापरवाही सिर्फ असंतोष या देखभाल के अपेक्षित मानक के दावे से स्थापित नहीं होती है। यह स्वीकार किया जाता है कि चिकित्सकों से अपेक्षा की जाती है कि वे उचित स्तर की विशेषज्ञता का इस्तेमाल करें। चिकित्सा लापरवाही निर्धारित करने का उचित मानदंड यह आकलन करने में निहित है कि क्या चिकित्सक द्वारा उठाए गए कदम संबंधित क्षेत्र में उचित रूप से सक्षम चिकित्सक के स्वीकृत मानकों से नीचे है।”
इस व्यक्ति की पत्नी की 2016 में एक निजी अस्पताल के कुछ चिकित्सकों की कथित लापरवाही के कारण मृत्यु हो गई थी।
अदालत ने कहा कि चिकित्सकों का दायित्व मरीज के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना और सबसे उपयुक्त उपचार प्रदान करना है, लेकिन उन्हें मरीज के परिवार द्वारा निर्धारित अपेक्षाओं या समय-सीमाओं से बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायाधीश ने कहा कि यदि किसी चिकित्सक ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन उचित कौशल और क्षमता के साथ किया है, तो उसे लापरवाह नहीं माना जा सकता है और उन्हें चिकित्सीय आवश्यकता और पेशेवर निर्णय लेते हुए ही कार्य करना चाहिए।
याचिकाकर्ता के आरोप तीन चिकित्सकों के अलावा दवा और जांच में देरी, वरिष्ठ चिकित्सक की अनुपलब्धता और दवा की अधिक खुराक से संबंधित थे।
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