विदेश की खबरें | अल्जाइमर्स: व्यायाम से मिल सकती है मदद

लंदन, 25 नवंबर (द कन्वरसेशन) शारीरिक कसरत बहुत महत्वपूर्ण होती है और यह उम्र बढ़ने के साथ-साथ मस्तिष्क की संरचना और क्रियाकलाप की सुरक्षा में भी मददगार होती है। इससे अल्जाइमर्स जैसी मस्तिष्क से संबंधित परेशानियों का जोखिम कम हो सकता है।

यूं तो अनुसंधानकर्ता कई साल से व्यायाम के सुरक्षात्मक प्रभाव को जानते हैं, लेकिन मस्तिष्क पर इसका वास्तविक असर कितना होता है, यह रहस्य ही है। हालांकि जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित हालिया अध्ययन इस पहेली पर कुछ रोशनी डाल सकता है।

अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार शारीरिक क्रियाकलाप से मस्तिष्क की प्रतिरक्षा कोशिकाओं की गतिविधियों में परिवर्तन आता है और मस्तिष्क में सूजन कम होती है। मस्तिष्क में विशेष प्रतिरक्षा कोशिकाओं की एक श्रेणी होती है जिसे माइक्रोग्लिया कहते हैं। ये मस्तिष्क के ऊतकों के किसी तरह के नुकसान या उनमें संक्रमण पर नजर रखती हैं तथा बेकार कोशिकाओं को हटाती हैं।

माइक्रोग्लिया दूसरी कोशिकाओं को संदेश भेजने वाली तंत्रिका कोशिकाओं ‘न्यूरोन्स’ के उत्पादन में भी सीधे सहायक होती हैं। यह काम न्यूरोजेनेसिस नामक प्रक्रिया के माध्यम से होता है। लेकिन माइक्रोग्लिया को अपना काम करने के लिए सुप्तावस्था से सक्रिय अवस्था में आने की जरूरत होती है। वायरस जैसे पैथोजन्स या क्षतिग्रस्त कोशिकाओं से मिलने वाले संकेत माइक्रोग्लिया को सक्रिय करेंगे। इससे उनका आकार बदल जाता है और क्षतिपूर्ति में मदद मिलती है।

हालांकि माइक्रोग्लिया अनुपयुक्त तरीके से भी सक्रिय हो सकती हैं। क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ मस्तिष्क में गंभीर सूजन हो सकती है और न्यूरोजेनेसिस की प्रक्रिया अवरुद्ध हो सकती है। आयु बढ़ने के साथ मस्तिष्क के कामकाज करने के पड़ने वाले प्रभाव की एक वजह यह सूजन भी है और ये बदलाव अल्जाइमर्स जैसी समस्या में और नुकसानदेह हो सकते हैं।

इस अध्ययन में 167 पुरुषों और महिलाओं ने भाग लिया। यह शिकागो स्थित रश यूनिवर्सिटी में संचालित एक दीर्घकालिक परियोजना है जिसका उद्देश्य उम्रदराज लोगों में मस्तिष्क के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों को चिह्नित करना है। प्रतिभागियों ने अपनी शारीरिक गतिविधियों का वार्षिक मूल्यांकन पूरा किया जिस पर नजर शरीर पर पहने जा सकने वाले एक ट्रैकर से रखी गई।

अनुसंधानकर्ताओं ने प्रतिभागियों के मस्तिष्क में सिनेप्टिक प्रोटीन के स्तर पर भी नजर रखी। ये प्रोटीन तंत्रिका कोशिकाओं के बीच छोटे-छोटे बंध होते हैं जहां सूचना संचरित होती है।

इसमें प्रतिभागियों की औसत उम्र 86 वर्ष थी जब उनके शारीरिक क्रियाकलाप पर निगरानी रखना शुरू किया गया और मृत्यु के समय उनकी उम्र 90 वर्ष थी। एक तिहाई प्रतिभागियों को कोई संज्ञानात्मक दुर्बलता नहीं थी, एक तिहाई लोगों में मामूली संज्ञानात्मक दुर्बलता थी और बाकी एक तिहाई में डिमेंशिया की शिकायत देखी गई।

अध्ययन में कुछ प्रतिभागियों पर मृत्यु के बाद पोस्ट मार्टम के दौरान भी विश्लेषण किया गया और पाया गया कि करीब 61 प्रतिशत प्रतिभागियों में मस्तिष्क में अल्जाइमर्स के संकेत थे। इससे साफ होता है कि मृत्यु के बाद किसी में अल्जाइमर्स बीमारी के संकेत मिलने पर भी यह जरूरी नहीं है कि व्यक्ति के जीवित रहते समय उसमें संज्ञानात्मक दुर्बलता के बड़े लक्षण दिखाई दें।

अध्ययन में कम आयु के प्रतिभागियों को सामान्य रूप से शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय देखा गया और वे मस्तिष्कीय रूप से भी सक्रिय दिखे। इससे पता चलता है कि शारीरिक क्रियाकलाप से मस्तिष्क में सूजन के नुकसानदेह प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है।

अध्ययन के परिणाम उत्साहजनक हैं लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। पोस्ट मार्टम विश्लेषण में मस्तिष्क की स्थिति का केवल एक ही स्नैपशॉट देखने को मिलता है। इसका अर्थ है कि हम यह सही-सही नहीं बता सकते हैं कि प्रतिभागी के मस्तिष्क में बीमारी के संकेत शुरू होने का सही समय क्या है और किस स्तर पर शारीरिक गतिविधियां इसे रोक सकती हैं।

(द कन्वरसेशन)

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